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विशेष सूचना- Arya Samaj तथा Arya Samaj Marriage और इससे मिलते-जुलते नामों से Internet पर अनेक फर्जी वेबसाईट एवं गुमराह करने वाले आकर्षक विज्ञापन प्रसारित हो रहे हैं। अत: जनहित में सूचना दी जाती है कि इनसे आर्यसमाज विधि से विवाह संस्कार व्यवस्था अथवा अन्य किसी भी प्रकार का व्यवहार करते समय यह पूरी तरह सुनिश्चित कर लें कि इनके द्वारा किया जा रहा कार्य पूरी तरह वैधानिक है अथवा नहीं। Kindly ensure that you are solemnising your marriage with a registered organisation and do not get mislead by large Buildings or Hall. For More information contact us at - 09302101186
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All India Arya Samaj

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    विशेष सूचना- Arya Samaj तथा Arya Samaj Marriage और इससे मिलते-जुलते नामों से Internet पर अनेक फर्जी वेबसाईट एवं गुमराह करने वाले आकर्षक विज्ञापन प्रसारित हो रहे हैं। अत: जनहित में सूचना दी जाती है कि इनसे आर्यसमाज विधि से विवाह संस्कार व्यवस्था अथवा अन्य किसी भी प्रकार का व्यवहार करते समय यह पूरी तरह सुनिश्चित कर लें कि इनके द्वारा किया जा रहा कार्य पूरी तरह वैधानिक है अथवा नहीं। Kindly ensure that you are solemnising your marriage with a registered organisation and do not get mislead by large Buildings or Hall. For More information contact us at - 09302101186
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    Arya Samaj Marriage आर्यसमाज विवाह आपके अपने स्थान पर
    समस्त भारत में कहीं भी, कभी भी
    शादी माफिया दलालों से सावधान

    आवश्यक सूचना को ध्यान से पढ़ें - अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट के Recognized & Approved Legal केन्द्र केवल इन्दौर, भोपाल, जोधपुर, रायपुर, बिलासपुर, जबलपुर, डबरा - ग्वालियर तथाचान्द - छिन्दवाड़ा में हैं। इनके अतिरिक्त अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट का अन्य कोई Authorized मन्दिर या शाखा अथवा केन्द्र नहीं है।इनके अलावा किसी व्यक्ति या संस्था द्वारा चलाये जा रहे किसी भी केन्द्र या शाखा के लिए अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट जिम्मेदार नहीं है। अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट का मुख्यालय इन्दौर (म.प्र.) में है।

    यदि आप अपने स्थान पर ही अपना शुभ विवाह करवाना चाहते है तो अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट के विद्वान पण्डित  द्वारा आपकी अपनी जगह (घर,  होटल अथवा धर्मशाला) पर पहुंचकर क़ानूनी एवं वैदिक विधि विधान से आपका शुभ विवाह संपन्न कर दिया जायेगा।

    अपनी मनपसन्द सजातीय या अन्तरजातीय विवाह Intercaste Marriage करने के इच्छुक युवक-युवतियों की सुविधा, गोपनीयता एवं सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए "अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट" की All India Arya Samaj Marriage Helpline की ओर से भारत के सभी प्रान्तों के सभी जिलों, तहसीलों व नगरों में जहाँ हमारे अधिकृत केन्द्र नहीं हैं वहाँ पहुँचकर वैदिक विद्वान आर्य पण्डितों द्वारा आर्यसमाज विधि से विवाह संस्कार सम्पन्न किया जाता हैं।

    Arya Samaj Marriage Process -विवाह करने के इच्छुक युवक-युवतियों को इसके लिए कम-से-कम एक सप्ताह पूर्व सूचना ट्रस्ट के इन्दौर स्थित मुख्यालय को देनी होगी तथा अपने परिचय पहचान-पत्र Whatsapp 8989738486 पर भेजना होंगे। सभी कागजात व दस्तावेज पूरे होने पर भारत के किसी भी जिला, तहसील या नगर में आपके अपने स्थान पर पहुंचकर हमारे विद्वान आर्य पण्डित द्वारा कानून मान्य आर्यसमाज विधि से विवाह संस्कार सम्पन्न करवा दिया जाएगा एवं तत्काल विवाह सत्यापन पत्र प्रदान कर दिया जाएगा। किसी भी प्रकार की Emergency या जल्दी की अवस्था में एक या दो दिन की पूर्व सूचना पर अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट के इन्दौर स्थित राष्ट्रीय मुख्यालय पर अपने पहचान पत्र आदि दस्तावेजों एवं चार गवाहों के साथ पहुँचकर अपना विवाह एक ही दिन में सम्पन्न करवा सकते हैं।

     

    शादी माफिया दलालों से सावधान - दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, लखनऊ, कानपूर, इंदौर, जयपुर, रायपुर आदि बड़े शहरों में एवं स्थानीय स्तर पर भी अनेक वकीलों और दलालों ने अनेक बोर्ड़ लगा रखे हैं। Google Map तथा अखबारों एवं सोशल मीडिया के माध्यम से इनका बहुत बड़े स्तर पर प्रचार किया जा रहा है। Arya samaj, Arya Samaj Mandir, Arya Samaj Marriage, Same Day Court Marriage, Love Marriage, Head Office और इससे मिलते जुलते नामों से इण्टरनेट पर अनेक फर्जी वेबसाइट एवं गुमराह करने वाले आकर्षक विज्ञापन प्रसारित हो रहे हैं। परेशान युवक-युवतियाँ कानून से अनजान होने के कारण दलालों एवं इण्टरनेट के विज्ञापनों और फर्जी वेबसाइटों के जाल में आसानी से फंस जाते हैं। जैसे-जैसे अन्तरजातीय एवं प्रेम विवाहों का चलन समाज में बढता जा रहा है, उसी गति से इस क्षेत्र में दलाल और अनधिकृत संस्थाएं भी भारत के हर शहर में सक्रिय हो गई हैं, जिनके द्वारा अन्तरजातीय एवं प्रेम विवाह करने के इच्छुक युवक-युवतियों को गुमराह किया जा रहा है। 

    Arya Samaj Marriage Helpline द्वारा वैवाहिक जोड़ों की कानूनी सुरक्षा (Legal Safety) एवं पुलिस संरक्षण (Police Protection) हेतु नियमित मार्गदर्शन (Legal Advice) दिया जाता है। जिससे उन्हें भविष्य में होने वाली कठिनाइयों से बचाया जा सके। 

    Arya Samaj Marriage Helpline की आवश्यकता क्यों? स्थानीय स्तर पर अधिकांश नगरों में अनेक संस्थाएं या मन्दिर अथवा केन्द्र हैं, जो अन्तरजातीय विवाह करवाते हैं और विवाह प्रमाण-पत्र देते हैं। परन्तु यह पाया गया है कि इन मन्दिरों या संस्थाओं को अन्तरजातीय विवाह करवाने की अनुमति नहीं होती है तथा ये कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन भी नहीं करते हैं। इसी कारण राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, उत्तरप्रदेश, उत्तराखण्ड आदि प्रान्तों के उच्च न्यायालयों (High Courts) द्वारा इन पर अनेक प्रकार के प्रतिबन्ध लगा दिये गए हैं।

    वस्तुतः इन मन्दिरों या संस्थाओं के अधिकांश कर्त्ता-धर्त्ताओं को कानून की कोई जानकारी नहीं होती। इस कारण इनके माध्यम से विवाह करने वाले युगलों को बाद में परेशानी होती है और अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ झेलनी पड़ती हैं। जिस संस्था या मन्दिर में ऐसे युगलों ने विवाह किया होता है, वे बाद में इनका कोई सहयोग नहीं करते और ही वे इनको कानूनी मार्गदर्शन दे पाते, क्योंकि उक्त संस्थाओं के संचालक स्वयं ही कानून से अनभिज्ञ होते हैं। इन सब समस्याओं को देखते हुए Aryasamaj Marriage Helpline की शुरुआत की गई है, ताकि मनपसन्द विवाह करने वाले प्रेमी युगलों की पूरी कानूनी सुरक्षा हो सके तथा उनके इच्छित स्थान पर जाकर वैदिक विद्वान आर्य पण्डित द्वारा उनका कानून मान्य विधि विधान एवं पारम्परिक वैदिक पद्धति से उनका विवाह संस्कार सम्पन्न किया जा सके।

    कानूनी सुरक्षा होने से नवविवाहित युगल बहुत परेशान होते हैं तथा इधर-उधर भटकते रहते हैं और पैसा लुटाते रहते हैं। कई बार तो ऐसे युवक-युवतियाँ आत्महत्या करने को भी विवश हो जाते हैं। ऑनर कीलिंग का खतरा तो उन पर मण्डराता ही रहता है। अपनी कानूनी सुरक्षा के इच्छुक युवक-युवतियों को उनके हित में हम सावधान करते हैं कि वे दलालों, अनधिकृत संस्थाओं, फर्जी वेबसाइटों एवं आकर्षक विज्ञापनों से भ्रमित हों। चाहे आप परिवार की बिना सहमति के प्रेम विवाह (Love Marriage) कर रहे हैं अथवा दोनों परिवारों या एक परिवार की सहमति से पारिवारिक विवाह (Arranged Marriage) कर रहे हैं, सभी स्थितियों में अपनी कानूनी सुरक्षा के लिए इन बातों का ध्यान आपको रखना चाहिए। ऐसा हमारा सुझाव है। आर्यसमाज होने का दावा करने वाले किसी बडे भवन, हॉल या चमकदार ऑफिस को देखकर गुमराह और भ्रमित ना हों।

    अत: जनहित में सूचना दी जाती है कि विवाह संस्कार सम्पन्न कराने से पूर्व यह पूरी तरह सुनिश्चित कर लें कि सम्बन्धित संस्था द्वारा किया जा रहा विवाह संस्कार पूरी तरह शासन द्वारा मान्य एवं लिखित अनुमति प्राप्त वैधानिक है अथवा नहीं, ताकि आपके साथ किसी प्रकार की धोखाधड़ी ना हो।सावधान करने के बाद भी जाने-अनजाने में यदि आप गलत जगह फंसते हैं, तो अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट की कोई जवाबदारी नहीं होगी।

    All India Arya Samaj Marriage Helpline ‘अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्टद्वारा संचालित हैं। भारतीय पब्लिक ट्रस्ट अधिनियम (Indian Public Trust Act) के अन्तर्गत पंजीकृत अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट एक धार्मिक-सामाजिक-शैक्षणिक-पारमार्थिक ट्रस्ट है।

    अन्तरजातीय विवाह आज के समय की आवश्यकता बन गई है। सामाजिक समरसता के स्थापन, अश्पृश्यता निवारण एवं राष्ट्र की एकता में अन्तरजातीय विवाहों का अत्यधिक योगदान है। भारत सरकार तथा विभिन्न प्रान्तीय सरकारें भी अन्तरजातीय विवाहों को प्रोत्साहन दे रही हैं तथा अन्तरजातीय विवाह करने वाले साहसी युवक-युवतियों को आर्थिक सहायता भी दे रही हैं।

     

    अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें -
    (समय - प्रातः 10 बजे से सायं 8 बजे तक)

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    बैंक कॉलोनी, इन्दौर (म.प्र.) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajindore.com

    क्षेत्रीय कार्यालय (भोपाल)
    आर्य समाज संस्कार केन्द्र
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    भोपाल शाखा
    पं. दीनदयाल उपाध्याय कन्या-
    महाविद्यालय के सामने
    शिव मन्दिर, बैरागढ़
    भोपाल (म.प्र.) 462030
    हेल्पलाइन : 8989738486
    www.bhopalaryasamaj.com

    क्षेत्रीय कार्यालय (चान्द - छिन्दवाड़ा)
    आर्य समाज संस्कार केन्द्र
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    छिन्दवाड़ा शाखा
    विनायक चौक, वार्ड न. 7, चान्द
    जिला- छिन्दवाड़ा (मध्य प्रदेश)
    हेल्पलाइन : 9300441615, 9009662310
    www.aryasamajchhindwara.com

    क्षेत्रीय कार्यालय (जबलपुर)
    आर्य समाज संस्कार केन्द्र
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    जबलपुर शाखा
    TFF-8, समदड़िया काम्प्लेक्स नं.-1
    चेरीताल, 
    दमोह नाका के पास
    जबलपुर (मध्य प्रदेश) 482002
    हेल्पलाइन : 9300441615
    www.aryasamajjabalpur.com

    क्षेत्रीय कार्यालय (ग्वालियर संभाग)
    आर्य समाज संस्कार केन्द्र
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    ग्वालियर शाखा
    महावीर पुरा, डबरा
    जिला- ग्वालियर (म.प्र.)
    हेल्पलाइन : 8120018052
    www.aryasamajgwalior.com

    क्षेत्रीय कार्यालय (रायपुर)
    आर्य समाज संस्कार केन्द्र
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    रायपुर शाखा
    वण्डरलैण्ड वाटरपार्क के सामने
    DW-4, इन्द्रप्रस्थ कॉलोनी
    होण्डा शोरूम के पास, रिंग रोड नं.1
    रायपुर (छत्तीसगढ़)
    हेल्पलाइन : 9109372521
    www.aryasamajraipur.com

    क्षेत्रीय कार्यालय (बिलासपुर)
    आर्य समाज संस्कार केन्द्र
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    बिलासपुर शाखा
    अग्रसेन चौक, सुपर मार्केट
    बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 495001
    हेल्पलाइन : 8120018052, 8989738486
    www.aryasamajbilaspur.com

    क्षेत्रीय सहायता (जोधपुर)
    हेल्पलाइन : 8120018052, 8989738486
    www.aryasamajjodhpur.com

    क्षेत्रीय सहायताजयपुर (राजस्थान)
    हेल्पलाइन : 8120018052
    www.jaipuraryasamaj.com

    क्षेत्रीय सहायता (बिहार)
    आर्य समाज पण्डित हेल्पलाइन
    पटना - 9109372521
    www.aryasamajmarriagehelpline.com 

    क्षेत्रीय सहायता
    हरियाणा, पंजाब एवं हिमाचल प्रदेश

    हेल्पलाइन : 9109372521
    www.aryasamajdelhincr.com

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    Arya Samaj Marriage

    विवाह हेतु आवश्यकजानकारीएवं दस्तावेज

    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्टद्वारा सम्पन्न होने वाले विवाह "आर्य विवाह मान्यता अधिनियम-1937, अधिनियम क्रमांक 1937 का 19' के अन्तर्गत कानूनी मान्यता प्राप्त हैं।अखिलभारतआर्यसमाजट्रस्टद्वारावैवाहिकजोड़ोंकीकानूनीसुरक्षा (Legal Sefety)एवंपुलिससंरक्षण (Police Protection)हेतुनियमितमार्गदर्शन (Legal Advice)दियाजाताहै।

    आवश्यक सूचना को ध्यान से पढ़ें -अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट के Recognized & Approved Legal केन्द्र केवल इन्दौर, भोपाल, जोधपुर, रायपुर, बिलासपुर, जबलपुर, डबरा - ग्वालियर तथा चान्द - छिन्दवाड़ा में हैं। इसके अतिरिक्त अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट का अन्य कोई Authorized मन्दिर या शाखा अथवा केन्द्र नहीं है। इसके अलावा किसी व्यक्ति या संस्था द्वारा चलाये जा रहे किसी भी केन्द्र या शाखा के लिए अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट जिम्मेदार नहीं है। अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट का मुख्यालय इन्दौर (म.प्र.) में है।

    यदि आप अपने स्थान पर ही अपना शुभ विवाह करवाना चाहते है तो अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट के विद्वान पण्डित  द्वारा आपकी अपनी जगह (घर, होटल अथवा धर्मशाला) पर पहुंचकर क़ानूनी एवं वैदिक विधि विधान से आपका शुभ विवाह संपन्न कर दिया जायेगा।

    Arya Samaj Marriage Process –

    1. वर-वधु दोनों के जन्म प्रमाण हेतु हाई स्कूल की अंकसूची या कोई शासकीय दस्तावेज तथा पहचान हेतु मतदाता परिचय पत्र या आधार कार्ड अथवा पासपोर्ट या अन्य कोई शासकीय दस्तावेज चाहिए। विवाह हेतु वर की अवस्था 21 वर्ष से अधिक तथा वधु की अवस्था 18 वर्ष से अधिक होनी चाहिए।

    2. वर-वधु दोनों को ट्रस्ट द्वारा निर्धारित प्रारूप में स्वयं का घोषणा पत्र - Undertaking प्रस्तुत करना होगा।

    3. वर-वधु दोनों की अलग-अलग पासपोर्ट साईज की 6-6 फोटो।

    4. दोनों पक्षों से दो-दो मिलाकर कुल चार गवाह, परिचय-पहचान पत्र सहित। गवाहों की अवस्था 21 वर्ष से अधिक हो तथा वे हिन्दू-जैन-बौद्ध या सिक्ख होने चाहिएं। गवाह पढ़े - लिखें होने चाहिएं।

    5. विधवा / विधुर होने की स्थिति में पति / पत्नी का मृत्यु प्रमाण पत्र तथा तलाकशुदा होने की स्थिति में तलाकनामा (डिक्री) आवश्यक है।

    6. वर-वधु का परस्पर गोत्र अलग-अलग होना चाहिए तथा हिन्दू विवाह अधिनियम के अनुसार कोई निषिद्ध रिश्तेदारी नहीं होनी चाहिए।
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    शादी-माफ़िया दलालों से सावधान- दिल्ली, नोएडा, गाज़ियाबाद, जयपुर, भोपाल, इन्दौर, रायपुर, लखनऊ, चण्डीगढ़, मुम्बई, हैदराबाद आदि बड़े शहरों में वकीलों एवं दलालों के शादी-माफिया के रूप में ऐसे अनेक गिरोह सक्रिय हैं, जो भारत के सभी शहरों में इण्टरनेट, सोशल मीडिया एवं समाचार पत्रों के माध्यम से Arya Samaj, Arya Samaj Mandir, Arya Samaj Marriage, Same Day Court Marriage, Legal Marriage, Love Marriage, Head Office और प्रादेशिक कार्यालय तथा इससे मिलते जुलते नामों से आकर्षक विज्ञापन देकर भोले-भाले युवक-युवतियों को अपने जाल में फंसाकर उन्हें गुमराह कर रहे हैं। Fake Location Map बनाने तथा किसी भी शहर में किसी भी मन्दिर के Location Map पर अपना illegal photo एवं illegal Mobile Phone नम्बर डालने में इनको महारत हासिल हैं। प्रेम विवाह के इच्छुक युवक-युवतियाँ इनके जाल में आसानी से फँस जाते हैं। सही मार्गदर्शन के अभाव में ऎसे युवक-युवतियाँ गलत रास्ते पर भी चले जाते हैं। बाद में पछताने के अलावा इनके पास कुछ नहीं बचता।

    आर्यसमाज विवाह करने हेतु समस्त जानकारियां फोन द्वारा प्राप्त की जा सकती हैं। विवाह सम्बन्धी जानकारी या पूछताछ‌ के लिए आप मो.- 8120018052 पर (समय - प्रातः 10 बजे से सायं 8 बजे तक) श्री देव शास्त्री से निसंकोच बात कर समस्त जानकारी प्राप्त कर सकते हैं तथा आपको जिस दिन विवाह करना हो उस मनचाहे दिन की बुकिंग आप फोन पर करा सकते हैं। फोन द्वारा बुकिंग करने के लिए वर-वधू का नाम पता और विवाह की निर्धारित तिथि बताना आवश्यक है।

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    युगलों की सुरक्षा - प्रेमी युगलों की सुरक्षा एवं गोपनीयता की गम्भीरता को ध्यान में रखते हुए तथा माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रेमी युगलों की सुरक्षा सम्बन्धी दिये गये दिशा-निर्देशों के अनुपालन के अनुक्रम में हमारे आर्य समाज द्वारा विवाह के पूर्व या पश्चात वर एवं वधू की गोपनीयता एवं सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए विवाह से सम्बन्धित कोई भी काग़जात, सूचना या जानकारी वर अथवा वधू के घर या उनके माता-पिता को नहीं भेजी जाती है, जिससे विवाह करने वाले युगलों की पहचान को गोपनीय बनाये रखा जा सके, ताकि उनके जीवन की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न न हो सके।

    विशेष सूचना- इण्टरनेट, सोशल मीडिया एवं समाचार पत्रों में प्रसारित हो रहे अनेक फर्जी वेबसाइट एवं आकर्षक विज्ञापनों को ध्यान में रखते हुए जनहित में सूचना दी जाती है कि इनसे आर्यसमाज विधि से विवाह संस्कार व्यवस्था अथवा अन्य किसी भी प्रकार का व्यवहार करते समय यह पूरी तरह सुनिश्चित कर लें कि इनके द्वारा किया जा रहा कार्य पूरी तरह शासन द्वारा मान्य एवं लिखित अनुमति प्राप्त वैधानिक है अथवा नहीं। इसके लिए सम्बन्धित संस्था को शासन द्वारा प्रदत्त आर्य समाज विधि से अन्तरजातीय आदर्श विवाह करा सकने हेतु लिखित अनुमति अवश्य देख लें, ताकि आपके साथ किसी प्रकार की धोखाधड़ी ना हो।

    "आर्यसमाज संस्कार केन्द्र"अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट द्वारा संचालित है। भारतीय पब्लिक ट्रस्ट अधिनियम (Indian Public Trust Act) के अन्तर्गत पंजीकृत अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट एक सामाजिक-शैक्षणिक-धार्मिक-पारमार्थिक ट्रस्ट है। "आर्यसमाज संस्कार केन्द्र" अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट द्वारा संचालित एकमात्र आर्यसमाज संस्कार केन्द्र है। इसके अतिरिक्त ट्रस्ट का अन्य कोई मन्दिर या शाखा अथवा संस्कार केन्द्र नहीं है। आप यह सुनिश्चित कर लें कि आपका विवाह शासन (सरकार) द्वारा आर्यसमाज विवाह कराने हेतु मान्य रजिस्टर्ड संस्था में हो रहा है या नहीं। आर्यसमाज होने का दावा करने वाले किसी बडे भवन, हॉल या चमकदार ऑफिस को देखकर गुमराह और भ्रमित ना हों।

    अधिक जानकारी के लिये सम्पर्क करें -
    (समय - प्रातः 10 बजे से सायं 8 बजे तक)

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    बैंक कॉलोनी, इन्दौर (म.प्र.) 452009
    फोन : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajindore.com

    क्षेत्रीय कार्यालय (भोपाल)
    आर्य समाज संस्कार केन्द्र
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    भोपाल शाखा
    पं. दीनदयाल उपाध्याय कन्या-
    महाविद्यालय के सामने
    शिव मन्दिर, बैरागढ़
    भोपाल (म.प्र.) 462030
    हेल्पलाइन : 8989738486
    www.bhopalaryasamaj.com

    क्षेत्रीय कार्यालय (चान्द - छिन्दवाड़ा)
    आर्य समाज संस्कार केन्द्र
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    छिन्दवाड़ा शाखा
    विनायक चौक, वार्ड न. 7, चान्द
    जिला- छिन्दवाड़ा (मध्य प्रदेश)
    हेल्पलाइन : 9300441615, 9009662310
    www.aryasamajchhindwara.com

    क्षेत्रीय कार्यालय (जबलपुर)
    आर्य समाज संस्कार केन्द्र
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    जबलपुर शाखा
    TFF-8, समदड़िया काम्प्लेक्स नं.-1
    चेरीताल, 
    दमोह नाका के पास
    जबलपुर (मध्य प्रदेश) 482002
    हेल्पलाइन : 9300441615
    www.aryasamajjabalpur.com

    क्षेत्रीय कार्यालय (ग्वालियर संभाग)
    आर्य समाज संस्कार केन्द्र
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    ग्वालियर शाखा
    महावीर पुरा, डबरा
    जिला- ग्वालियर (म.प्र.)
    हेल्पलाइन : 8120018052
    www.aryasamajgwalior.com

    क्षेत्रीय कार्यालय (रायपुर)
    आर्य समाज संस्कार केन्द्र
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    रायपुर शाखा
    वण्डरलैण्ड वाटरपार्क के सामने
    DW-4, इन्द्रप्रस्थ कॉलोनी
    होण्डा शोरूम के पास
    रिंग रोड नं.-1, रायपुर (छत्तीसगढ़)
    हेल्पलाइन : 9109372521
    www.aryasamajraipur.com

    क्षेत्रीय कार्यालय (बिलासपुर)
    आर्य समाज संस्कार केन्द्र
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    बिलासपुर शाखा
    अग्रसेन चौक, सुपर मार्केट
    बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 495001
    हेल्पलाइन : 8120018052, 8989738486
    www.aryasamajbilaspur.com

    क्षेत्रीय सहायता(जोधपुर)
    हेल्पलाइन : 8120018052, 8989738486
    www.aryasamajjodhpur.com 

    क्षेत्रीय सहायता जयपुर (राजस्थान)
    हेल्पलाइन : 8120018052
    www.jaipuraryasamaj.com

    क्षेत्रीय सहायता
    दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र
    (हरियाणा एवं उत्तरप्रदेश)
    Helpline : 8120018052
    www.aryasamajmarriagehelpline.com 

    क्षेत्रीय सहायता (मुम्बई)
    आर्य समाज पण्डित महाराष्ट्र
    हेल्पलाइन : 9109372521
    www.aryasamajonline.co.in  

    क्षेत्रीय सहायता (गुजरात)
    आर्य समाज पण्डित अहमदाबाद
    हेल्पलाइन : 9109372521
    www.aryasamajmarriagehelpline.com

    क्षेत्रीय सहायता (बिहार, झारखण्ड एवं उड़ीसा)
    आर्य समाज पण्डित हेल्पलाइन
    हेल्पलाइन : 9109372521
    www.akhilbharataryasamaj.org

  • अक्षरज्ञान की शिक्षा

    अक्षरज्ञान की शिक्षा
    एक माता किसी सुयोग्य मनोवैज्ञानिक के पास गई और पूछा की वह अपने चार वर्ष के बच्चे की शिक्षा कब से आरंभ कराए ? मनोवैज्ञानिक ने उत्तर दिया - आप पाँच वर्ष लेट हो गईं। बालक के गर्भ में आते ही उसका शिक्षण अपने आप में आवश्यक हेरा-फेर के साथ आरंभ कर लेना चाहिए। पाँच वर्ष आयु तक तो बालक आधी पढाई समाप्त कर लेता है। सूक्ष्मरूप से घर के सारे प्रभाव-परमाणु बच्चे के अंतःकरण में प्रवेश कर जाते हैं, स्वभाव ढल जाता है। पाँच वर्ष के बाद तो उसे स्वभावजन्य नहीं, अक्षरज्ञान की शिक्षा प्राप्त करनी ही शेष रह जाती है।

  • अनैतिकता

    अनैतिकता

    उस दुष्टता का नाम है; जिसमें मनुष्य पशुता से नीचे उतरकर पैशाचिकता के स्तर तक जा पहुँचता है। चोरी, उठाईगीरी, बेईमानी, शोषण, अपहरण, हत्या, लूट, डकैती, ठगी जैसे दुष्कर्म इसी श्रेणी में आते हैं। जब तक मनुष्य स्वार्थी, असहयोगी, स्वेच्छाचारी रहता है; तब तक वह पशु कहा जाता है, पर जब आक्रमणकारी बन जाता है और दूसरों के अधिकारों के अपहरण के लिए 'जिसकी लाठी उसकी भैंस' वाला जंगल का कानून हाथ में लेता है; तो उसे अपराधी कहते हैं।

  • आर्य समाज का दायित्व

    आर्य समाज का दायित्व

    आर्य समाज की स्थापना कांग्रेस के जन्म से दस वर्ष पहले हो चुकी थी। डा. पट्टाभि सीतारमैया के शब्दों में स्वराज्य के जो स्वर १९०६ में कांग्रेस के मंच पर मुखरित हुए उसकी सम्पूर्ण योजना और कार्यक्रम आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानन्द सरस्वती ने १८७५ में ही देश वासियों को दे दी थी। अपने प्रमुख ग्रन्थ सत्यार्थप्रकश में स्वराज्य को सुराज में बदलने की रुपरेखा भी अंग्रेजी राज को भारत से उखाड़ने के साथ-साथ स्वामी जी ने उन्हीं दिनों अपन ग्रन्थों में लिख दी थी। सुप्रसिद्ध क्रन्तिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा को विदेश में भेजकर स्वराज्य के लिए भूमिका तैयार करने में भी स्वामी जी दूरदृष्टि काम कर थी। भारत में देशी राजाओं को जी १८५७ की क्रान्ति में छुपे बैठे रहे उनको कर्त्तव्य बोध कराने में स्वामी जी ने कई बार देशी रियासतों की यात्रा की। उनके महाप्रयाण के बाद आर्य समाज के बहुत से नेता राष्ट्रीय आन्दोलन की अगली पंक्ति में रहकर स्वाधीनता आन्दोलन का नेतृत्व करते रहे। अमर शहीद स्वामी श्रद्धानन्द, पंजाब केसरी लाला लाजपतराय, देवतास्वरूप भाई परमानन्द, चौधरी रामभजदत्त आदि नेता उसी पीढ़ी के थे। क्रन्तिकारी आन्दोलन में भी सरदार भगत सिंह और राम प्रसाद बिस्मिल जैसे कई उभरते व्यक्तित्व आर्य समाज ने देश को दिये। इतना सब कुछ ज्ञान होने के बाद बी आर्य समाज विशुद्ध रूप से सांस्कृतिक और सामाजिक संगठन रहकर ही कार्य करे ये सब की इच्छा रही। परन्तु राजनीति से सदा आंख बन्द रखें और आर्य समाज राजनीति का निर्देश भी करे यह अभिप्राय किसी का नहीं था।

    Motivational speech on Vedas by Dr. Sanjay Dev
    Ved Katha Pravachan - 23 | Explanation of Vedas & Dharma | जैसा बोओगे वैसा काटोगे

    अंग्रेज भारत को आर्थिक गुलामी में जकड़ने के साथ-साथ सांस्कृतिक और सामाजिक बन्धनों में भी बांधकर रखना चाहता था। इसके लिए अंग्रजों ने जहां ईसाई मिशनरियों का जाल पूरे भारत में फैला। दिया वहीँ सरकारी शिक्षा संस्थाओं का भी खुला समर्थन इससे हो रहा था। लार्ड मैकाले ने इसी बात की अपनी सफलता का उल्लेख करते हए एक पत्र में लिखा था- 'वह दिन दूर नहीं जब भारतीय मन और मस्तिष्क दोनों ही हमारे षड़यंत्र का शिकार हो चुके होंगे। शरीर से भले ही वह हिन्दुस्तानी लगे पर उनके विचारों और वेशभूषा पर हम पूरी तरह से छ जायेंगे।' आर्य समाज ने इस चुनौती का भी मजबूती से सामना किया। उसके गुरुकुल और डी.ए.वी कॉलेज जहां युवा पीढ़ी में राष्ट्रीयता कूट-कूट भरने में लगे थे वहाँ ईसाई मिशनरियों की दुकाने बंद करवाने में भी आर्य समाज ने प्रमुख भूमिका निभाई। यह बात दूसरी है कि अथवा बड़े धनपति का हाथ कमर पर न होने से कुछ क्षेत्रों में उतना काम न हो सका जितना। आवश्यक था। फिर भी मिशनरियों को नाकों चने चबवा दिए। भारत के पूर्वी भागों में जहां आर्य समाज की शाखाएँ नहीं थी वहाँ जरूर कुछ इन्होंने अपने पंजे जामये। पर देश के मध्यवर्ती क्षेत्रों से निरशा ही उनको हाथ लगी।

    सामाजिक एवं राजनीतिक सुधार एक-दूसरे के पूरक हैं। आर्य समाज प्रारम्भ से ही इसे जनता था। इसलिए हरिजनों, आदिवासियों, महिलाओं की शिक्षा और उनकी सामाजिक स्थिति सुधारने प्रारम्भ से ही आर्य समाज ने विशेष यत्न किया। हिन्दू समाज ने भी इसमें साथ दे दिया होता तो तस्वीर आज कुछ और होती। फिर भी सौ वर्षों में इस क्षेत्र में की गई आर्य समाज सेवाएं आज इतिहास का विष बन गयी है। भारतीय संविधान में अस्पृश्यता अपराध माना गया है। हरिजनों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए उन्हें नौकरियों और विधानमण्डलों में विशेष संरक्षण देने की भी व्यवस्था की गयी है। आजकल अतिरिक्त भूमि के वितरण में भी हरिजन परिवारों को प्राथमिकता दी जा रही है। पर क्या इससे समस्या का समाधान हो गया? यह तो प्रारम्भिक प्रयास मात्र है। इसमें अभी बहुत कुछ क्रान्तिकारी परिवर्तन करने होंगें।

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    जन्म से जात-पात की समाप्ति और अन्तर्जातियाँ सम्बन्धों के विकास में आर्य समाज ने प्रारम्भ से ही अच्छी रूचि ली है। परन्तु अब लगता है कुछ इसमें शिथिलता आ रही है। इसके लिए शासन के स्तर पर जहाँ कुछ सुधार अपेक्षित हैं वहाँ सामाजिक स्तर पर भी नये पग उठाने होंगे होंगे। तमिलनाडु की सरकार ने अन्तर्जातीय विवाह करने वालों को सरकार की ओर से आर्थिक सहयोग और नौकरियों में प्राथमिकता देने का अभियान प्रारम्भ किया है, वह अनुकरणीय है। आर्य समाज यदि इसके लिए अनुकूल भूमिका तैयार करे तो उसमें केवल हिन्दू समाज का ही नहीं मानव समाज का बहुत भला हो सकता है। इसके लिए अपने संगठन में उन अधिकारीयों को प्रमुखता दी जाये जिन्होंने जात-पात से ऊपर उठकर अपना पारिवारिक विस्तार अथवा वैवाहिक संबन्ध किये हैं। आर्य समाज के सदस्य और पदाधिकारी ही कहीं-कहीं अपने नाम के साथ जब जातिवाचक शब्द लाते हैं तो उनकी आस्था में संदेह होने लगता है। आर्य समाज की शिक्षण संस्थाओं में पढ़ने और पढ़ाने वाले छात्रों एवं अध्यापकों के नामों के साथ जातिवाचक शब्दों का रहना उपहासास्पद लगता है। यहीं से जाति परक शब्दों के लिए मोह जगाता है। यदि यदि आर्य समाज इस दिशा में पहल करे तो शासन को विवश होकर इस ओर झुकना पड़ेगा। पीछे हरिजन समस्या के समाधान पर बोलते हुए वर्तमान प्रधानमंत्री ने कहा भी है जब तक देश में जात-पात की बुराई जीवित रहेगी तब तक हरिजन समस्या के स समाधान में बहुत बड़ी बाधा रहेगी।

    अभी गांधी जयन्ती से शराबबंदी के बारह सूत्री कार्यक्रम की घोषणा भी की गयी है। पराधीन भारत में जिस शराब की बुराई से मुक्ति लेने का दृढ़ संकल्प किया गया था, वह दुर्भाग्य से स्वाधीनता के अट्ठाईस वर्ष बाद और भी कई गुणा बढ़ गई है कई राज्य सरकारों का भी इसमें प्रमुख हाथ रहा। राज्य की आय बढ़ाने के चक्कर में आंख मूंदकर शराब के लाइसेंस दिये जाते रहे। पर आर्य समाज जैसे समाज सुधारक संगठन मजबूती से इस ओर लग जायें तो समाज और सरकार दोनों को सही रास्ते पर आना पड़ेगा। मादक द्रव्यों का सेवन वाला चाहे कितना भी बड़े से बड़ा नेता न हो उसका और सरकारी अधिकारीयों का जब तक खुलकर जनता में विरोध नहीं किया जायेगा तब तक यह बुराई देश से जायेगी नहीं। राजनीति से पृथक रहते हुए भी कृतसंकल्प होकर यदि आर्य समाज ने इस बुराई को दूर करने का बीड़ा उठा लिया तो भावी भारत उसका ऋणी रहेगा।
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    इसी तरह की एक और कमजोरी जो आज पुरे देश को स्वाधीन होने के बाद भी फिर से दासता के शिकंजों में जकड रही है वह है अंग्रेजी भाषा के बढ़ते हुए वर्चस्व की। एक बार तो यह लगने लगा था कि अंग्रेजी के नाम लेवा और पानी देवा बी इस देश में ढूंढने पर भी नहीं मिलेंगे, परन्तु अब फिर से अंग्रेजी हवा बढ़ रही है। सरकारी कार्यालयों, नौकरियों और परीक्षाओं में तो अंग्रेजी का दबदबा है ही। सामाजिक कार्यक्रमों में विशेषकर विवाह शादी के आमन्त्रणपत्रों तक में अंग्रेजी का भुत हावी हो रहा है। आर्य समाज के प्रवर्त्तक स्वामी दयानन्द जी ने अहिन्दी भाषी होते हुए भी राष्ट्र को एकता के सूत्र में पिरोने के लिए हिन्दी को राष्ट्र भाषा के रूप में स्वीकार किया था। अपने ग्रंथों और भाषणों में भी उन्होंने उसका प्रयोग नहीं किया। परन्तु अब आकर हिन्दी के प्रचारक और समर्थक भी थकते से नजर आ रहे हैं। आर्य समाज भाषायी स्वाभिमान देश में जागृत करने के लिए यदि आगे आता है तो दूसरे लोग भी उसके पीछे चलेंगे। क्योंकि आर्य समाज को इसके माध्यम से अपने किसी राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति नहीं करनी है इसलिए भी उसकी आवाज स्वागत योग्य होगी। देश आज सामाजिक और राजनीतिक क्रान्ति के चौराहे पर है। इमसें भाषायी स्वाभिमान का प्रश्न भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। राष्ट्रीय चेतना जगाने में भाषा की भी अपनी प्रमुख भूमिका रहती है। आर्य समाज शताब्दी के दूसरे चरण में प्रवेश करते समय अपने कार्यक्रमों में इसका समावेश करे। इसी तरह के कई और भी ज्वलंत प्रश्न हैं जिनको आर्य समाज अपने कार्य्रकम में स्थान दे तो देश उसे हाथों-हाथ उठा लेगा।

    राजनीतिक दल न होते हुए भी आर्यसमाज देश की वर्तमान और भावी राजनीति को स्वस्थ दिशा देने का काम आसानी से कर सकता है। सत्ता की राजनीति को सेवा की राजनीति में बदलने का काम प्रचलित राजनीतिक दलों द्वारा संभव नहीं है। यह आर्य समाज जैसे निष्पक्ष और तटस्थ संगठन ही कर सकते हैं। दशरथ की राजसभा में जो काम महर्षि वशिष्ठ का था वह ही आज आर्य समाज को निभाना होगा। किसी भी महत्वपूर्ण प्रश्न पर शासन और समाज दोनों आर्य समाज के संकेतों की आंख उठाकर प्रतीक्षा करें इस स्थिति में यदि आर्य समाज आ गया तो इतिहास में अमर हो जायेगा। - पं. प्रकाशवीर शास्त्री 

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    Social and political reforms complement each other. The Arya Samaj was known to it from the beginning. Therefore, the Arya Samaj paid special attention since the beginning of education of Harijans, tribals, women and improving their social status. Had Hindu society also supported it, the picture would have been different today. Nevertheless, Arya Samaj services performed in this area in a hundred years have become the poison of history today. Untouchability is considered a crime in the Indian Constitution. 

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  • आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य - संसार का उपकार करना

    आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य - संसार का उपकार करना

    महर्षि दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज के १० नियमों का निर्धारण वेद के आधार पर करते समय उपरोक्त नियम आर्य समाज के हर सदस्य के लिए उसके जीवन के उद्देश्य के रूप में निर्धारित कर दिया। और फिर इसकी विस्तृत व्याख्या की। शारीरिक, आध्यात्मिक और सामाजिक उन्नति करना। यह तीन प्रकार की वृति यदि संसार के मनुष्य समाज में हो तो इससे संसार का उपकार हो जाता है।

    प्रथम शारीरिक उन्नति के लिए शरीर को निरोग और स्वस्थ्य रखना तथा परिवार जनों, इष्ट मित्रों और सम्पर्क में आने वाले सब मनुष्यों के शरीर को निरोग और स्वस्थ्य रखना और स्वास्थ्य रखना और शारीरिक विकास करना तथा कराना मनुष्य का उद्देश्य रहना चाहिए।

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    वेद कथा - 25 | The Secret of Wealth Creation the Vedic Way | धन प्राप्ति के वैदिक उपाय | Hinda Vedas

    आध्यात्मिक उन्नति के लिए आवश्यक है कि मनुष्य की सोच आध्यात्मिक ज्ञान पर आधारित सत्यनिष्ठा, ईश्वर आस्तिक, परोपकारी, अहिंसक और औरों के काम आने वाली रचनात्मक सोच रहनी चाहिए। आध्यात्मिक ज्ञान-विज्ञान अर्जित करने के लिए महर्षि दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज का प्रथम नियम निर्धारित किया कि ''सब सत्य विद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं, उन सबका आदि का मूल परमेश्वर है। इस सत्य विद्या का स्त्रोत् कहा हैं, इसके लिए आर्य समाज के तीसरे नियम में महर्षि दयानन्द सरस्वती ने निर्देश दिया कि ''वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है, वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना सब आर्यों का परम धर्म हैं।'' परम शब्द धर्म से पहले लगाकर महर्षि ने मनुष्य को धर्म की पराकष्ठा का ज्ञान कराया और बता दिया कि सब सत्य विद्याओं का ज्ञान अर्जित करने के लिए हमें वेद पढ़ना और पढ़ाना चाहिए। यदि हम पढ़ने पढ़ाने में असमर्थ हैं तो हमें विद्वानों से सुनना और सुनाना चाहिए।

    जो मनुष्य स्वयं वेद पढ़कर या वेद का ज्ञान विद्वान् से सुनकर दूसरे मनुष्यों को वेद का ज्ञान-विज्ञान पढ़ाता है एवं सुनाता है तो यझ यह वेद प्रचार का सबसे बड़ा परोपकार है। सत्य विद्याओं का ज्ञान प्रवाहित करने से सब मनुष्य वेद ज्ञान के ज्ञानी-विज्ञानी बन जाते हैं और उनकी विचारधारों सात्विक व धर्म परायण हो जाती है। धर्म परयाण विचारों से मनसा, वाचा, कर्मणा पूर्ण मनुष्य सामाजिक सात्विक, अहिंसक, परोपकार और यज्ञमय जीवन व्यतीत करने वाला बन जाता है।

    सामाजिक उन्नति और विकास को भी महर्षि दयानन्द सरस्वती ने मनुष्य आचरण का उद्देश्य निर्धारित किया है। मनुष्य समाज का अंग हैं, जिसमें वह पैदा हुआ, माता-पिता, बहिन-भाई के रिश्ते, वंश के अन्य व्यक्ति, पूर्वजों के साथ उनके रिश्ते और रिश्तों के साथ जुड़े कर्तव्य मनुष्य जीवन का मार्गदर्शन करते हैं। मनुष्य को समाज में सफल और स्वस्थ जीवन व्यतीत करने के लिए धन-ऐश्वर्य की आवश्यकता त्याग भाव से भोगने के लिए वेद ज्ञान में निर्धारित यह व्यक्तिगत आवश्यकता नहीं, बल्कि सार्वजानिक आवश्यकता है।
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    आर्य समाज के नौवें नियम में महर्षि दयानन्द सरस्वती ने परोपकार की इस भावना से संसार के उपकार करने के मानवीय उद्देश्य को प्रबल शब्दों में कर्तव्य के रूप में बतलाया है'' केवल अपनी उन्नति से ही सन्तुष्ट नहीं रहना चाहिए, बल्कि सबकी उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिए।'' यह नियम सर्व उपकारी, मनुष्य के व्यक्तिगत और सार्वजानिक विकास और उत्कर्ष अर्जित करने वाला साधन और माध्यम है। इसे अपने जीवन का उद्देश्य माना जाए तो संसार में हिंसा, विरोधाभास, ईर्ष्या-द्वेष, अपराध वृत्ति, झूठ फरेब जैसे दुर्गुण तुरन्त प्रभाव से समाप्त हो जायेगे। आज के इस श्रृंगार रस में डूबे हुए समाज में आपराधिक वृत्ति, आतंकवाद, जाति-पाति पर आधारित भेदभाव और आक्रमणकारी हिंसक प्रवृत्ति का मूल कारण यह है कि हम सबने उपरोक्त वैदिक नियमों का, जिनका महर्षि दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज के दस नियमों में विशेष उल्लेख किया है, का अनुसरण करना छोड़ दिया है। आर्य समाज, अन्य धर्मस्थान व समाज सेवी संस्थाओं ने परोपकारी कार्य करने का प्रयास किया है: जिसे निःशुल्क चिकित्सालय खोले है, पाठशालायें खोली है, यज्ञशाला बनवाई हैं, गौशालाओं का निर्माण किया है, परन्तु इन सबके होते हुए भी कमी मनुष्य के अंतःकरण की पवित्रता की है।

    स्वार्थ सिद्धि ने पवित्रता को, परोपकार की भावना को नष्ट कर दिया है और इसके स्थान पर जोर-जबरदजस्ती ने अपराध की सीमा तक भी पहुँचकर मनुष्य स्वार्थ सिद्धि की पूर्ति के लिए अपने आपको अनैतिकता के दलदल में गिराता चला जा रहा है। मनुष्य के आचरण की पवित्रता के बारे में कवियों ने बहतु सुन्दर कवितायेँ लिखी हैं। एक कवि की दो पक्तियाँ प्रस्तुत है:-

    फरिश्तों से बेहतर है, इन्सान होना। कर्म पर ही निर्भर है, सम्मान होना।।
    वैदिक संस्कृति के मूल्यों का आदर और सम्मान करते हुए मनुष्य कर्म को धर्म अपनी सत्यनिष्ठा से बना लेता है तथा पुरुषार्थ से अर्जित किया हुआ धन-ऐश्वर्या एक व्यक्ति के समक्ष पात्र में आता है और वह ईश्वर का ध्यान करके उनका भोग लगाने वाला है, इतने में एक अतिथि पहुँचता है। वह व्यक्ति वह खाद्य पदार्थ सम्मान उस अतिथि के समक्ष के प्रस्ततु कर देता है। वह गृहस्थी खाद्य पदार्थ के सेवन की इच्छा करने जा रह था, वह उसका कर्म था, अतिथि को प्रस्तुत कर दिया, वह उसका धर्म है।
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    आज जीवन दर्शन है। मनुष्य अपने व्यक्तिगत भोग से पूर्व अपने परिवार, वंश, आसपड़ोस, संपर्क में आने वाले इष्ट, मित्रों, विद्वानों, सन्यासियों का विचार करके उनकी तृप्ति के पश्चात स्वयं ईश्वरीय पदार्थों का भोग करता है, उसको वेद की भाषा में ''तेन व्यक्तेन भुंजीथा'' कहा गया है। इस सृष्टि में परमात्मा ने मनुष्य के भोग व सेवन के लिए नाना प्रकार के पदार्थों की रचना की है, परन्तु उनका त्याग भाव से सेवन करो, त्याग भाव से रहो, यह शिक्षा हमें यज्ञ देता है। हम अपने घर से अपने पुरुषार्थ से कमाई से सामग्री, घृत, मिष्टान आदि यज्ञशाला में ले जाकर यज्ञ की पवित्र अग्नि प्रज्जवलित करके वेद मंत्रों के उच्चारण के साथ आहुति डालते हैं, वहीँ दूसरी ओर समस्त संसार के वनस्पति, जीव जन्तु मनुष्यों को उसका लाभकारी प्रभाव प्राप्त हो रहा है, इसलिए वेद की भाषा में यज्ञ सर्वश्रेष्ठ कर्म कहा गया है।

    परम पिता परमेश्वर को हम सब प्राणी जो किसी भी स्थान पर रहते हैं, कोई भी मत रखते हैं, ईश्वर की सत्ता में अवश्य विश्वास करते हैं तो हमारा कर्तव्य बनता है कि महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा स्थापित आर्य समाज नियम की अवश्य पालन करें:-''संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है।'' - हरवंश लाल कपूर

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    Maharishi Dayanand Saraswati, while determining the 10 rules of Arya Samaj based on Vedas, laid down the above rules as the objective of his life for every member of Arya Samaj. And then explained it in detail. To make physical, spiritual and social progress. If these three types of nature are in the human society of the world, then it becomes a favor of the world.

     

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  • आर्य समाज विवाह हेतु आवश्यक दस्तावेज एवं जानकारी

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    विवाह हेतु आवश्यक दस्तावेज एवं जानकारी

    आर्यसमाज विवाह करने हेतु समस्त जानकारियां फोन द्वारा प्राप्त की जा सकती हैं। विवाह सम्बन्धी जानकारी या पूछताछ‌ के लिए आप मो.- 8120018052 पर (समय - प्रातः 10 बजे से सायं 8 बजे तक) श्री देव शास्त्री से निसंकोच बात कर समस्त जानकारी प्राप्त कर सकते हैं तथा आपको जिस दिन विवाह करना हो उस मनचाहे दिन की बुकिंग आप फोन पर करा सकते हैं। फोन द्वारा बुकिंग करने के लिए वर-वधू का नाम पता और विवाह की निर्धारित तिथि बताना आवश्यक है। Arya Samaj Marriage Indore Head Office facilitates to book an appointment for marriage. Marriage Services available for All over India as well at affordable fees (Dakshina).

  • ईश्वर में अविश्वास क्यों - १

    ईश्वर में अविश्वास क्यों - १

    शास्त्रार्थ महारथी पं. रामचंद्र देहलवी - शास्त्रार्थ महारथी पं. रामचंद्र देहलवी का जन्म रामनवमी सावत् १९३८ को मुंशी छोटेलाल के घर नीमच मध्यप्रेश में हुआ। इनकी मेट्रिक तक की शिका इंदौर में हुई। १८ वर्ष की आयु में इनका विवाह हो गया, जो जीवन निर्वाह के लिए इन्होंने नौकरी कर ली। उसे छोड़कर कुछ समय पश्चात अपने ससुर की दुकान में स्वर्णकारीगर का कार्य करने लगे। इसमें उन्हें अच्छी सफलता और लोकप्रियता प्राप्त हुई। ३६ वर्ष की आयु में इनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया तब समाज एवं परिवार का बहुत दबाव दूसरे विवाह के लिए पड़ा पर यब उन्होंने विवाह से सर्वथा इंकार कर दिया और अपना अधिक समय धर्मग्रंथो के अध्ययन में लगाने लगे।

    उन दिनों दिल्ली के चांदनी चौक के फुहारे पर दो मौलवी और ईसाई अपने धर्म का प्रचार कर रहे थे। पं. रामचंद्र जी उनके व्याख्यानों में हिन्दू धर्म पर आक्षेपों को सुनकर अपने ऊपर ग्लानि करने लगते। अतः इन्होंने उनके प्रचार का मुकाबला करने के लिए उसी स्थान पर नियमित रूप से व्याख्यान देना शुरू किया। तब लोग इनके उपदेशों से प्रभावित होते चले गये और मौलवी पादरियों के व्याख्यान का प्रभाव नगण्य होता चला गया। इनके व्याख्यानों में इतनी भीड़ होने लगी कि रास्ता ही जाम हो जाता। तब पुलिस ने इनके व्याख्यान के लिए गांधी ग्राउंड निश्चित कर दिया। वहां १४ वर्ष तक इनके निरंतर व्याख्यान होते रहे शनैः शनैः आर्यसमाज के श्रेष्ठ वक्ता के रूप में प्रसिद्ध हो गये और सारे देश में व्याख्यान और शास्त्रार्थ के लिए जाने लगे। हैदराबाद का निजाम तो इनके व्याख्यानों से हिल गया था। इन्होंने कई ग्रन्थ लिखे हैं। इनके लेखों व्याख्यानों का संग्रह रामचंद्र देहलवी लेखवाली प्रसिद्ध है। अच्छी आयु भोगकर २ फरवरी १९६८ में दिल्ली में इनका स्वर्गवास हुआ।
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    संपादक - आजकल कुछ मित्रादि अथवा दूसरे व्यक्ति जब मुझसे मिलते हैं तो मुझसे प्रायः यह प्रश्न किया करते हैं, क्या कारन है कि ईश्वर के अस्तित्व के विषय में इतने भाषण होते हैं फिर भी लोगों का ईश्वर में विश्वास समाप्त होता जा रहा है ?'' बात सत्य है और मुझे यह स्वीकार करना पड़ता है कि लोगों का ईश्वर में अविश्वास बढ़ता जा रहा है। आज ईश्वर में अविश्वास क्यों बढ़ता जा रहा है, इसके कारण हैं ? इसी विषय पर विचार रखूंगा।

    १. परिवार में ईश्वरभक्ति या पूजा का न किया जाना- आजकल परिवारों में न ईश्वरभक्ति है न ईश्वर आराधना किया जाता है, संध्या, अग्निहोत्र आदि की ओर भी कोई ध्यान नहीं है। इसके न होने के कारण ईश्वर के अस्तित्व का विश्वास समाप्त होता जा रहा है। जहां हर समय रडियो बजता है, सिनेमा के गाने गाये जाते हैं और अल्लाह से ज्यादा नम्बर सुरैया का है, वहां ईश्वर को कौन पूछता है ? जैसा घर का वातावरण होता है वैसा ही प्रभाव पड़ता है। घर में ईश्वरीय भक्ति या पूजा न होने के कारण ईश्वर को भूल जाते हैं, ईश्वर का विचार ही नहीं रहता। ईश्वर में आस्था और विश्वास उत्पन्न करे के लिए ईश्वरभक्ति और पूजा जारी रहनी चाहिए।

    Motivational speech on Vedas by Dr. Sanjay Dev
    वेद कथा -18 | Explanation of Vedas & Dharma | धर्म की अनिवार्यता एवं सुख

    २. ईश्वर को ऐसे रूप में रखना जो समझ में न आये - ईश्वर सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, सर्व्यापक है, परन्तु सम्प्रदायी लोगों ने उसको साधारण जनता के सामने उल्टे ढंग से रखा है। सम्प्रदायी लोगों के सामने रख दिया। इसमें परमात्मा का कोई दोष नहीं क्योंकि परमात्मा तो सबको ज्ञान देता है। जब कोई बुरा कर्म करने लगता है तो उसे उस कार्य को करते भय, शंका और लज्जा होती है, परन्तु उस इस ज्ञान को लेता कोई कोई है। जैसे मच्छर सारे में 'पिन-पिन' करता है परन्तु सुनाई उस समय देता है जब वह कान के पास आता है। सम्प्रदायी लोगों ने अपने अज्ञान के कारण मकान के एक आले में गणेश मूर्ति ईश्वर घोषित कर दिया। परन्तु क्या गणेश ईश्वर हो सकता है? कदापि नहीं। क्या हाथी का सिर कभी किसी बच्चे के सिर पर आ सकता है? ऐसी बातों से अविश्वास तो होगा ही। महर्षि दयानन्द ने अपने अमर ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश में मूर्तिपूजा को अवैदिक बताते हुए इसके खंडन में १६ युक्तियां दी हैं।

    ३. बहुत प्रार्थना करने पर भी इच्छा की पूर्ति न होना- कभी कभी ऐसा होता है कि बहुत बार प्रार्थना कर पर भी इच्छा पूरी नहीं होती। इससे ईश्वर में अविश्वास उत्पन्न होता है। तब लोगों की इच्छा पूरी नहीं होती तो वे कहते हैं कि परमात्मा अपने पुत्र जीवात्मा की इच्छा पूरी करने में (Miserably fail) बुरी तरह फैल हो गया। परन्तु यह बात ठीक नहीं है
    प्रार्थना का फल इच्छा की पूर्ति नहीं अपितु प्रार्थना का फल है अभिमान का नाश, उत्साह की वृद्धि और सहायता का मिलना। कभी मनुष्य किसी कठिनाई कार्य को कर लेता है तो उसकी अपनी शक्ति का अभिमान हो जाता है परन्तु जब वह सोचता है कि ईश्वर अधिक शक्तिशाली है तो उसका अभिमान चूर हो जाता है। जब मनुष्य का ईश्वर में पूर्ण विश्वास होता है तो उसमें उत्साह की वृद्धि होती है और कार्य करते हुए उसमे सहायता भी प्राप्त होती है।

    ४. भगवान जागरूक नहीं, प्रमाद में पड़ा हुआ है -पुलिस कितनी सतर्क है। दिन का तो कहना ही क्या, रात में भी चोर और डाकुओं को पकड़ती है, किन्तु ईश्वर कुछ नहीं करता इसलिए प्रमादी है और उसके प्रमादी होने से ही लोगों में ईश्वर अविश्वास बढ़ता जा रहा है।

    समाधान - यहां एक ही बात के दो हिस्से कर दिये हैं। गवर्नमेण्ट परमात्मा का ही प्रबंध है। वह ईश्वर के कार्य में सहायक है। ईश्वर सब कुछ देखता है परन्तु सब कुछ नहीं कर सकता और सब कुछ करना आवश्यक भी नहीं। परमात्मा सदा जागरूक रहता है, वह प्रमादी कदापि नहीं हो सकता। - शास्त्रार्थ महारथी पं. रामचंद्र देहलवी

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    Shastraartha Maharathi Pt. Ramchandra Dehalvi - Shastharth Maharthi Pt. Ramachandra Dehalvi was born in Ramnavami Savat 1936 in Neemuch Madhya Pradesh, home of Munshi Chhotalal. His metric till Shika took place in Indore. He got married at the age of 14, who took a job for a living. After leaving him, after some time, he started working as a goldsmith in his father-in-law's shop. In this he gained good success and popularity.

     

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  • ईश्वर में अविश्वास क्यों - २

    ईश्वर में अविश्वास क्यों - २

    ५. किसी प्रिय व्यक्ति का नाश हो जाना या मर जाना- जब किसी व्यक्ति का कोई प्रिय सम्बन्धी मर जाता है तो उसे ईश्वर में अविश्वास हो जाता है। एक पीर जी की घरवाली मर गई तो कहने लगा, ''तेरा क्या गया, मेरा घर बिगड़ गया। इन बच्चों को तू पालेगा क्या ?''

    समाधान - जब ईश्वर की और से विपत्ति आती है तो समझना चाहिए कि इसमें हमारी भलाई है क्योंकि विपत्ति मनुष्य को ऊंचा उठाती हैं। संसार के महापुरुषों पर विपत्तियां आई हैं। विपत्तियां तो प्रभु की याद दिलाने के लिए आती हैं, परन्तु लोग फिर भी ईश्वर को भूल जाते हैं। मृत्यु क्या है? प्रकृति और जीवात्मा के मिलाप का नाम जन्म और प्रकृति तथा जीवात्मा के वियोग का नाम मृत्यु है। जो उत्पन्न हुआ है, वह मरेगा अवश्य। योगेश्वर कृष्ण ने भी गीता में इस ही कहा है - जातस्य हि ध्रुवो मृत्युध्रुवं जन्म मृतस्य च || 

    जो उत्पन्न हुआ है वह अवश्य मरेगा और जो मरेगा उसका जन्म भी अवश्य होगा। जब जन्म के पीछे मृत्यु और मृत्यु के पीछे जन्म लगा हुआ है तो घबराहट और निराशा किसलिए?
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    ६. पापियों को सुख और पुण्यात्माओं को दुःख में देखकर ईश्वर में अविश्वास पैदा होता है। 

    समाधानपापियों को सुख में और पुण्यात्माओंको दुःख में देखकर लोग कारण और कार्य का सम्बन्ध लगा लेते हैं। इसी उल्टी धारणा से ईश्वर में अविश्वास उत्पन्न होता है। एक व्यक्ति कर्म तो अच्छा कर रहा है और उसका फल उसे दुःख मिले, यह कदापि नहीं हो सकता। अच्छा कर्म करते हए दुःख आ गया यह बात तो ठीक है, परन्तु यह कार्य और कारण (cause and effect) का सम्बन्ध नहीं है। दूसरी ओर एक व्यक्ति कार्य बुरा कर रहा है और उसे फल अच्छा मिल जाये, यह भी ठीक नहीं। एक उदाहरण से यह बात स्पष्ट हो जायेगी। एक व्यक्ति ने चोरी की और फिर सन्ध्या करने लगा। पुलिस आई और उसे पकड़कर ले गई। इस व्यक्ति को सन्ध्या के कारण नहीं पकड़ा गया। पापियों को सुख और पुण्यत्माओं का दुःख पूर्व जन्म के कर्मों के कारण है।

    ७. घातक का न पकड़ा जाना और निर्दोष का फंस जाना - कभी कभी ऐसा होता है कि कत्ल करने वाला बच जाता है और निर्दोष व्यक्ति फंस जाता है तो लोग कहते है कि यह क्या प्रबंध है?

    समाधान- यह ठीक है कि कभी-कभी निर्दोष व्यक्ति भी फंस जाते हैं। फंसने वाला व्यक्ति निर्दोष अवश्य है परन्तु उसका पहला कोई ऐसा कर्म हो सकता है जिसक दंड उसे भोगना शेष हो और बहुत से व्यक्ति पकडे जाने के पश्चात छूट भी जाते हैं।

    Motivational speech on Vedas by Dr. Sanjay Dev
    वेद कथा -19  | मानवता ही मनुष्य का धर्म  | introduction to vedas & Dharma

    ८. विद्वानों का निर्धन और मूर्खों का धनी होना - यह भी ईश्वर अविश्वास का एक कारण है। परन्तु सभी विद्वान् निर्धन हो और सभी मुर्ख धनी हो यह बात गलत है। स्वामी दर्शनानन्द जी भूतपूर्व श्री कृपाराम जी अदभुत तार्किक और विद्वान् होते हुए भी बहुत धनवान थे ऐसे अनेक उदाहरण हैं।

    ९. भगवान के कामों में कोई व्यवस्था नहीं जैसी मनुष्य के कार्यों में है- भगवान की रचना में कोई क्रम नहीं है। एक बाग और पहाड़ को ले लो। बाग में नींबू की लाइन एक ओर, संतरे की लाइन एक ओर और आम के वृक्ष अलग लाइन में प्रत्येक वस्तु एक एक नियम में होगी। इसेक विपरीत पहाड़ पर एक वृक्ष यहां, एक वृक्ष वहां, कोई कहीं और कोई कहीं, किसी प्रकार का कोई क्रम नहीं है।

    समाधान- परमात्मा की सृष्टि में क्रम है और अत्यन्त उत्कृष्ट क्रम है। परमात्मा की सृष्टिरचना में क्रम न मानना ऐसा ही है जैसे एक चींटी मनुष्य के ऊपर चढ़ जाये और पेट और छाती के ऊपर जाकर सोचे, यह बड़ा अच्छा मैदान है, फिर ऊपर चलकर दाढ़ी और मूछों में पहुंच जाये तो कहे यहां तो बड़ा भारी जंगल है, नाक के छिद्रों पर आकर कहे कि यहां तो छिद्र हो रहे हैं और ऊपर चढ़कर आँखों के गड्ढों में देखकर कहे यहां तो बड़ी उबड़-खाबड़ जगह है। इस प्रकार एक चींटी की दृष्टि में यह शरीर एक बेढंगा है। कहीं मैदान, कहीं जंगल, कहीं छिद्र है और कहीं उबड़-खाबड़ है परन्तु किसी शरीरविशेषज्ञ से पूछिये तो वह कहेगा कि यह तो प्रभु की सर्वोत्कृष्ट रचना है। - शास्त्रार्थ महारथी पं. रामचंद्र देहलवी

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    When the calamity comes from God, then it should be understood that it is in our best because the calamity lifts man. Plagues have come on the great men of the world. Plagues come to remind God, but people still forget God. What is death? The name of the reconciliation of nature and soul is birth and the name of separation of nature and soul is death. What has been born will die. Yogeshwar Krishna has also said this in the Gita.

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  • जीवन यात्रा के साथ विश्राम

    जीवन यात्रा के साथ विश्राम
    जीवन यात्रा के साथ विश्राम भी जरूरी - जीवनयात्रा में तन-मन की थकान स्वाभाविक है। अधिक श्रम, पारिस्थितिकी दबाव या तनाव के कारण शरीर व मन पर अत्यधिक खिंच-तान करने की स्थिति में हमारी दैनिकचर्या प्रभावित होती है। इसके लिए विश्राम की आवश्यकता पड़ती है। जीवन-साधना में नींद के साथ विश्राम तन-मन को तरोताजा कर देता है और कार्य को एकाग्रचित होकर करना संभव बनाता है। इसलिए जीवनशैली में विश्राम को स्थान देना महत्वपूर्ण हो जाता है। 

  • दहेज प्रथा एक सामाजिक अभिशाप

    दहेज प्रथा एक सामाजिक अभिशाप

    दहेज रूपी भयंकर अजगर से दो परिवार नष्ट हो जाते हैं। जिनके हृदय का टुकड़ा कन्या जली, वो परिवार तो नष्ट हुआ ही, जिन्होंने जला डाला वे भी उम्र भर जेल की चक्की पीसते हैं। जिन्दा मर जाना चाहते हैं, परन्तु मौत तो तब आएगी जब पाप का फल पूरा भोग लेंगे।

    बहुएं जलाने का ९५ प्रतिशत कलंक माताओं के माथे ही लगता है क्योंकि पुरुषों को इतना ज्ञान नहीं होता कि दहेज में क्या कम कीमत का आया और क्या महंगा आया। मातायें ही एक-एक चीज साड़ी, जेवर इत्यादि उठा-उठाकर पति को दिखाती हैं कि ये वस्त्र तो पहनने के लायक ही नहीं हैं, जेवर बहुत कमजोर व हल्के हैं। बहु भी व्यवहार में अच्छी नहीं है, वेतन भी बहुत काम लाती है। पडोसी की बहु का वेतन भी अधिक है, दहेज भी अच्छा लाई थी। हमारे पुत्र में क्या कमी थी। ऐसी ऐसी बातें कर करके पति और पुत्र दोनों अपने साथ मिला लेती हैं, और एक दिन बन्द कमरे में सब मिलकर उस निहत्थी एवं निर्दोष कन्या को जलाकर राख कर देते हैं। पूरा परिवार बर्बाद हो जाता है, माँ देखती रह जाती है। पछतावे के सिवाय हाथ में कुछ नहीं लगता।

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    Ved Katha Pravachan - 26 | Explanation of Vedas | धार्मिक शंका समाधान - प्रश्नों के उत्तर

    सरकार की कमजोरी प्रशासनिक व्यवस्था एवं कम सजा के कारण जलाने वाले को फाँसी नहीं लगती, जो कि लगनी चाहिए, परन्तु उम्र भर चक्की पीसनी पड़ती है। लोभी माँ से अब कोई पूछे कि तूने अपनी घर की अनमोंल निधि अपनी निर्दोष एवं पूजा के योग्य पुत्रवधु, जिनके कारण तेरा घर बच्चों की किलकारियों से गुंजायमान होना था, उसे जलाकर तूने क्या हासिल किया, तू तो अपना पुत्र भी गंवा बैठी।

    आश्चर्य का विषय है कि जिस देश में नारी का इतना सम्मान रहा हो कि देश का नाम भी उसी के नाम से रखा गया हो- 'भारत माता', भारत पिता नहीं, वहाँ नारी की आज यह दशा। किसी बड़े से बड़े राष्ट्र ने भी कभी देश का नाम नारी के नाम से नहीं रखा होगा। भारतवर्ष के अतिरिक्त कोई भी अन्य देश चाईना माता, इंग्लैंड माता, अमेरिका माता, जैसे नामों से नहीं जाने जाते है। नारी जाति को इतना बड़ा सम्मान केवल और केवल 'भारत माता' कहकर इसी राष्ट्र ने दिए।

    वेद जो कि हमारी गाइड बुक हैं, हमारी धर्म पुस्तक हैं, उसमें भी नारी के अति विशेष सम्मान देते हुए वर्णिंत किया गया है कि : 'यत्र नारी पूज्यते रमन्ते तत्र देवताः' अर्थात् जहाँ नहीं का सम्मान किया जाता है वहां पर देवता निवास करते हैं। फिर भी इसी देश में क्यों नारी पर समय-समय पर अत्याचार होते आए हैं। सति प्रथा भी इसी देश में हुई। राजा राम मोहन राय ने जब जिन्दा नारी को जलाते और चिल्लाते हुए देखा तो उनका ह्रदय चीत्कार कर उठा। उन्होंने विचार किया कि यदि पति के बाद पत्नी को जला दिया है तो पत्नी के बाद पति को क्यों नहीं। इस प्रथा को मिटाने के लिए कानून बनाकर नारी जाति पर बहुत बड़ा उपकार किया। पूरी नारी जाति का मस्तक उनके सामने नतमस्तक हो उठा। श्रीराम जो कि ह्रदय से जानते थे कि सीता सर्वथा निर्दोष और शत प्रतिशत पतिवृता है, फिर भी अग्नि परीक्षा ले ली। एक मूर्ख व्यक्ति के कहने पर ही घर से निष्कासित कर दिया। निर्दोष द्रौपदी का चीर हरण भी तो इसी देश में हुआ।

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    बुद्धि परिणामतः इतनी बढ़ी कि नारी प्रधानमंत्री तक के पद पर आसीन हुई। नारी ने चैन की सांस ली और महर्षि दयानन्द उपकारों आगे नतमस्तक हो गई हो गई। परन्तु समय ने ऐसी करवट बदली की धन के लोभ ने पढ़ी-लिखी माँ को भी अन्धा कर दिया। सरकार ने बहतु कानून बनाए, परन्तु इस भयंकर अजगर रूपी दहेज प्रथा को नहीं रोक सकी। सरकार भी इसमें कहाँ तक करे, क्योंकि ये जो घर की बात ठहरी, जो कि लोगों के ह्रदय परिवर्तन किए बिना हल नहीं हो सकती। इसलिए आवश्यकता है ह्रदय परिवर्तन की। धार्मिक संस्थाओं और धार्मिक प्रवृति के लोगों को मानवीय उपदेशों द्वारा लोगों का ह्रदय परिवर्तन करना होगा।

    मैं समझती हूँ की इस ओर आर्य समाज की भी एक भारी जिम्मेदारी है। आर्य समाज सदा ही अपने मिशन में कोई न कोई जटिल समस्या रखकर उससे जुड़ता रहा है। आर्य समाज का इतिहास गवाह है कि प्रारम्भिक दौर में आर्य के कर्मठ कार्यकर्ताओं ने समाज में व्याप्त हर बुराई और कुरीतियों का डटकर मुकाबला किया है और उसे दूर भी किया। किन्तु आज मानो आर्य समाज थक सा गया है। आज सैकड़ों समस्यों और बुराइयों को देखते हुए भी आर्य समाजियों ने आँखे बन्द कर रखी हैं, और यदि आर्य समाज ही सो गया तो सारे समाज का क्या होगा? सभी बुद्धि जीवी मानते हैं कि आर्य समाज सत्य, संघर्ष, शालीनता, सुन्दरता, स्वाभिमान का आदर्श है जो हर जगह संजीवनी का कार्य करता रहा है तो ऐसे अवसर पर आर्य समाज क्यों पीछे रहें?

    बन्धुओं ! आइए नारी के लिए सदा संघर्षशील यह समाज आज और एक संकल्प लेना चाहता है। दहेज रूपी राक्षस जो कि नारी के उत्पीड़न का साधन है, को मिटाकर समाज में एक आदर्श स्थापित करें। जब-जब नारी पर अत्याचार या विपत्तियाँ आई आर्य समाज ने सदा नारी की रक्षा एवं संरक्षण की है। आज भी दहेज की आड़ में नारी शोषित हो रही है और नारी पर अनेक अत्याचार कियें जा रहें है।

    आर्यसमाज को आज की तारीख में एक यही मोर्चा लेकर अपना आन्दोलन चलाना चाहिए। हर आर्यसमाजी संकल्प ले कि न तो वह दहेज लेगा और न दहेज देगा। लेने की भावना रखना और न देने के लिए आन्दोलन चलाना भी एक भयंकर स्वार्थ है, यहीं अधर्म है इसलिए न्याय समान होना चाहिए। हमें न ही दहेज चाहिए और न ही किसी को दहेज देंगे। साथ ही आजकल विवाह में दिखावें के लिए लाखों रुपयें टेन्ट, फार्म हाऊस आदि के नाम पर खर्च किये जा रहें है। आखिर रुपयों का इतना अधिक आप व्यय क्यों हो रहा है?

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    आर्य समाज आह्वान करें अपने सदस्यों से कि विवाह में अधिक व्यव न करें। पहले पाकिस्तान में हमारे ग्रामिण क्षेत्रों की पंचायत ऐसे अपव्यव अपर अंकुश लगाती थी। अधिक व्यय करने वालो को ढण्ड दिया जाता था। आज आवश्यकता है कि आर्यसमाज भी एक पंचायत के रूप में भूमिका निभायें। दहेज और अधिक अपव्यव का संविधान पारित कर अपने सदस्यों में लागू करें और कठोरता से चाहे नैतिकता के आधार पर हो या दण्डीय आधार पर हो उसका पालन किया जायें। आर्य समाज का हर मंदिर इस पंचायत का कार्यालय होगा। इसेक हर सदस्य इस नियम का पालन करेंगे और यदि हम पालन करने में सक्षम हुए तो हजारों-लाखों लोग उस राक्षस से बचने के लिए हमारी शरण में आयेंगे। अपने नियम व शर्तों के आधार पर वे भी इस आन्दोलन के भागी बनेंगे। मैं आर्य समाज की प्रत्येक इकाई से प्रार्थना करती हूँ कि इस सुझाव पर विचार कर अपने समाज में इस व्यवस्था को लागू करें। अगर ऐसा हो जाता है तो धनाढ्य वर्ग की नकल करके दिखावे की जिन्दगी जीने वाला मध्यवर्गीय दहेज और अधिक खर्चे के बोझ से बच जाएगा और तब न कोई बेटी के जन्म पर मातम मनाएगा और न ही नारी को नरक का द्वार कहेगा। 
    आर्यों ! आईये विचार कीजिये और इस समस्या का समाधान हम अपनी आर्य समाज से ही शुरू करते हैं। मुझे विश्वास है आप सभी अपनी समाज में आदर्श स्थापित करने के लिए पहले स्वंय कदम बढ़ायेंगे। - श्रीमती प्रेमलता शास्त्री

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    95% of the stigma of burning a daughter-in-law is felt on the foreheads of the mothers, because men do not have much knowledge about what came less in dowry and what came more expensive. Mothers only pick one thing, sari, jewelry etc. and show the husband that these clothes are not suitable for wearing, the jewelry is very weak and light. Bahu is also not good in practice, salary also brings a lot of work. Neighbor's daughter-in-law's salary is also high, dowry was also good. What was lacking in our son.

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  • दांपत्य जीवन का आधार

    दांपत्य जीवन का आधार
    दांपत्य जीवन का आधार दो आत्माओं का परस्पर आकर्षण और साहचर्य है; यह बात जानते, कहते तो सब हैं, पर अंतःकरण तक यह तथ्य बैठता कम ही लोगों में है। सुख और शांति की कामना तो प्रत्येक को होती है, परन्तु इस कामना को साकार रूप कैसे दिया जाए ? इसका विचार तथा स्मरण करने और तदनुसार आचरण करने के साथ पर जब ध्यान इस ओर अटकने लगता है कि जीवनसाथी से हमने अभीप्सित सुख-शांति प्राप्त नहीं हो रही है; इसका संपूर्ण दोष इसी पर है, मुझ पर ऐसा क्रम शुरू हो जाता है, जो समाप्त होता ही नहीं दीखता।
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  • दुर्बलता को त्यागें

    दुर्बलता को त्यागें
    असफलता से परेशान होकर अपने प्रयासों को छोड़ें, नहीं और किंचित सफलता पाकर संतुष्ट होकर बैठें नहीं। उपनिषद् में भी ऐसा ही कहा है - 'उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत' अर्थात उठो, जागो और लक्ष्यप्राप्ति होने तक रुको मत। दुर्बलताओं को त्यागें और शक्तिमान बनें - स्वामी विवेकानंद के अनुसार - उपनिषदों का प्रत्येक पृष्ठ मुझे-संदेश देता है। यह चिंतन विशेष रूप से स्मरण रखने योग्य है, समस्त जीवन में मैनें यही महाशिक्षा प्राप्त की है।

  • धन की शक्ति

    धन की शक्ति

    धन की शक्ति बड़ी सीमित है। उससे शरीर का निर्वाह करने वाले पदार्थ खरीदे जा सकते हैं; जिनकी वास्तविकता बहुत ही सीमित है। जमा किया हुआ अत्यधिक धन किसी के कुछ काम नहीं आता। सब जहाँ-का-तहाँ पड़ा रह जाता है। जिन उत्तराधिकारियों के लिए उसे जोड़ा जाता है, वे उस मुफ्त के माल से बेरहम ऐयाशी करते हैं और उसे बारूद की तरह फूँककर तमाशा देखते हैं। मुफ्त की मिली हुई पैतृक संपत्ति उत्तराधिकारियों को निकम्मा, आलसी, व्यसनी, फजूलखरची एवं दुर्गुणी बना देती है; इसलिए संतान के लाभ के लिए जोड़ा गया धन वस्तुतः उनकी हानि ही करता है। 

  • नारी का उत्थान मानव जाति का उत्थान है

    नारी का उत्थान मानव जाति का उत्थान है

    मनु ने नारी के सम्बन्ध में अत्यन्त ही सामयिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है।
    आत्मानमात्मना यास्तु रक्षेयुस्ताः सुरक्षिताः। 
    अर्थात् जो स्त्रियां अपनी रक्षा अपने आप ही करती हैं, वही सुरक्षित रहती हैं। आज के परिवेश में नारी के इस स्वरूप को स्वीकार किया है। डॉ. राधाकृष्णन ने लिखा है- 'जब कहा जाता है कि नर और नारी, पुरुष और पृकृति के भांति हैं, तो इसका अभिप्राय यह होता है कि वे एक-दूसरे के पूरक हैं। नारी मूलतः पुरुष की शिक्षक है। वैदिक युग में धर्म की सबसे बड़ी अभिव्यक्ति यज्ञ था। इसमें पति-पत्नी दोनों भाग लेते थे। दोनों मिलकर प्रार्थना करते थे और आहुतियां डालते थे। हारीत ने स्त्रियों को ब्रम्हवादिनी और सुद्योवधु के सम्बोधन से सम्बोधित किया है। नारी सामाजिक बोध और व्यवहार के समान रूप से दक्ष होती है। वर्तमान में नारी जागरण को के स्वरूप को देखकर योगेश चन्द्र घोष ने लिखा है- आल दैट इज बेस्ट इन विमेन आज रेज्ड टू ए स्टेट आफ हाई इमिनेन्स।' अर्थातः नारी परम श्रद्धा की अधिकारिणी है।

    Motivational speech on Vedas by Dr. Sanjay Dev
    Ved Katha Pravachan - 24 | Explanation of Vedas | वेद में धन प्राप्ति के मन्त्र

    भारतीय संस्कृति में वैदिक युग से ही नर-नारी की प्रति सम्मान का भाव नारी सृष्टि के उपादान का प्रथम सोपान है। मानव सभ्यता के विकास के इतिहास में पुरुष एवं प्रकृति का महत्व समान रूप से स्वीकार किया गया है। विभिन्न सभ्यताओं के उतार-चढाव के कारण सामाजिक विकृतियां उत्पन्न हुई और इन विकृतियों ने समाज को पुरुष प्रधान के शासन की ईकाई के रूप में प्ररिणत कर दिया। उपनिषद और ब्राह्मण के युग में सामाजिक सत्व का विस्तार हुआ और नारी-सम्मान की सामाजिक मान्यता दृढ़ता की ओर अग्रसर हुई किन्तु स्मृति एवं पुराण के युग में नारी के अस्तित्व को चुन्नौती दी जाने लगी। वस्तुतः नारी प्रकृति की एक ऐसी सत्ता है जिसके सभी उपासक एवं मित्र हैं। किसी न किसी रूप में सभी नारी के सम्मान को स्वीकार करते हैं। इसलिए मनु ने लिखा है- 

    यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।।
    अर्थात् जिस कुल में स्त्रियां पूजित होती हैं, उस कुल से देवता प्रसन्न होते हैं, उस कुल से देवता प्रसन्न होते हैं। जहां स्त्रियों का अपमान होता है, वहां सभी यज्ञादि कर्म निष्फल होते हैं। इससे यह प्रतीत होता है कि प्राचीन भारत में नारी सम्मान की सामाजिक मान्यता धर्म और शास्त्रों में मर्यादित थी।
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    The women who protect themselves on their own are protected. In today's environment, we have accepted this form of woman. Dr. Radhakrishnan has written - 'When it is said that male and female are like men and background, it means that they are complementary to each other. Woman is basically a teacher of men. The biggest expression of religion in the Vedic era was Yajna.

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  • निष्पक्ष न्याय

    निष्पक्ष न्याय

    हम अपने लिए जैसा व्यवहार दूसरों के द्वारा होने की आशा करते हैं; वैसा व्यवहार हमें दूसरों के साथ करना चाहिए। दूसरों के हितों को आघात पहुँचा कर अपना स्वार्थ-साधना करने की नीति से हमें प्रयत्नपूर्वक बचना चाहिए। यह सत्य है कि संसार में अधिकांश दुःख हमारे पापों के परिणामरूप होते कई बार कर्मफल तुरंत मिल जाता है। जिसके साथ बुरा किया गया, उसके द्वारा, प्रत्याक्रमण, सामाजिक अपकीर्ति, लोगों के असंतोष एवं असहयोग के कारण ओने वाली हानि एवं राजदंड द्वारा उस बुराई का दंड मिल जाता है। इनसे भी कोई व्यक्ति बच जाए तो ईश्वरीय निष्पक्ष न्याय द्वारा प्राप्त होने वाले दंड से कोई व्यक्ति बच नहीं सकता।

  • पर्व-त्योहारों की श्रृंखला

    पर्व-त्योहारों की श्रृंखला

    पर्व-त्योहारों की श्रृंखला में हम जन्मतिथियाँ भी मनाते हैं, जैसे-गणेश चतुर्थी, रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी, हनुमान जयंती, गंगा दशहरा, गीता जयंती, बुद्ध जयंती, महावीर जयंती, गुरुनानक जयंती, गांधी जयंती, बाल दिवस, शिक्षक दिवस आदि। साथ ही हम राष्ट्रीय पर्व भी मानते हैं, जैसे गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस आदि और विशेष त्योहार भी मानते हैं, जैसे गुरुपूर्णिमा, रक्षाबंधन, दशहरा, दीपावली, वसंत पंचमी, होली आदि। हम व्रत-पर्व भी मनाते हैं, जैसे- महाशिवरात्रि व्रत, वटसावित्री व्रत, निर्जला एकादशी व्रत, हरितालिका व्रत, करवाचौथ, श्री सूर्यषष्ठी व्रत, संकष्टी गणेशचतुर्थी व्रत आदि। 

  • पारस्परिक स्वार्थ

    पारस्परिक स्वार्थ

    बुराई पर चलने वालों की इज्जत बुरे लोगों के बीच भी नहीं होती। पारस्परिक स्वार्थ के लिए वे गुटबंदी करके कुछ समय तक ही एक जंजीर में बँधे भले ही रहें, पर ऐसी दशा में भी नशेबाज पर सर्वत्र तिरस्कार ही बरसता है। मुँह के सामने कोई भले ही कटु भर्त्सना न करे, पर मन में तो अवमानना का भाव रखे ही रहेगा। अवसर मिलने पर निंदा भी करेगा। पैसा खरच करके शरीर को गलती हुए यह निंदा, तिरस्कार मोल लिया जाए, संपर्क-क्षेत्र में अपना मन गिराया जाए, तो इसमें क्या समझदारी रही? 

  • प्रकाश पुंज महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती - १

    प्रकाश पुंज महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती - १

    आदिकाल से ही आध्यात्मिक की पुण्य पावन सलिला सतत् प्रवह्मान होकर भारत भूमि को पुनीत करती रही हैं। भारत का प्रत्येक प्रान्त इसके पवित्र स्पर्श से स्नात हुआ हैं। भारत का प्रान्त पंजाब जहां गुरुओं, पीरों फकीरों व वीरों की भूमि होने के निमित्त पवित्र है वहीँ गुजरात मनीषियों व क्रान्तिद्रष्टा महापुरुषों की जन्मभूमि होने का सौभाग्य रखता है। गुजरात जन्मभूमि है- विश्व को अहिंसात्मक क्रान्ति का मार्ग दर्शाने वाले महापुरुष राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की। गुजरात मतृभूमि है- ५५२ रियासतों में विभक्त खण्ड-खण्ड बंटे भारत का एकीकरण करने वाले कुशल राजनीतिज्ञ लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की और गुजरात को सौभाग्य प्राप्त है- समस्त राष्ट्र में व्याप्त अज्ञानांधकार को चीरकर ज्ञान की प्रचण्ड दीपशिखा का प्रकाश प्रसारित करने वाले तथा राष्ट्रवासियों के हृदयों पर जमी हुई पाखण्ड की परत पर कुठाराघात कर उसे खण्डित करने वाले दिव्य शक्तिपुंज महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती की जन्मभूमि होने का। सन् १८२४ को काठियावाड़ के टंकारा ग्राम में अवतरित महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती जैसा दिव्य व्यक्तित्व विश्व में एक ही बार पदार्पण करता है। उन जैसा कोई सत्यव्रती न बन सका क्योंकि एक वही मूलशंकर थे जो मंदिर में उठी आशंकाओं के समाधान हेतु परम प्रकाश की तलाश में गृह त्याग कर दृढ़ता से प्रवृत हो सके तथा परम तत्व को पा सके। इसीलिए केवल वही एक ऐसा अलौकिक व्यक्तित्व था जो स्वामी पूर्णानन्द का शिष्यत्व और स्वामी विरजानन्द की आशीष ग्रहण कर मूलशंकर से महर्षि स्वामी दयानन्द बनने का गौरव पा सका।

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    Ved Katha Pravachan - 29  | सम्पूर्ण विश्व के सुख व कल्याण की कामना | यजुर्वेद मन्त्र ३०.३

    राष्ट्रकवि दिनकर की पंक्तियां -
    साकार दिव्य, गौरव-विराट पौरुष का पुंजीभूत ज्वाल,
    मेरी जननी का हिमकिरीट 
    मेरे भारत का दिव्य भाल जहां कहीं एकता अखण्डित,
    जहां प्रेम का स्वर है।
    देश-प्रेम में वहां खड़ा, भारत जीवित भास्वर है।
    भारत के विराट गौरव ज्वाल से आलोकित इस दिव्य भाल की भास्वरता का श्रेय जाता है - ऋषिवर दयानन्द जैसे महामनीषियों को, संतों-महात्माओं को, विद्वानों को, दिव्य पुरुषों को क्योंकि महनीय व्यक्तियों की महनीयता उनके कर्म के असाधारणत्व में निहित रहती है। कर्म की यही विशेषता उन्हें जान-साधारण से कहीं उच्च धरातल पर प्रतिष्ठित कर देती है और वे अनुकरणीय व्यक्तित्व बन जाते हैं। ऐसे ही महापुरुष महर्षि दयानन्द सरस्वती के जीवनानुभव विश्व के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन गए। धन्य है ऐसा व्यक्तित्व जो स्वयं गरल ग्रहण करके सत्य व स्नेह की अमृत वर्षा करता रहा। धन्य है वह व्यक्तित्व जो विरोध के पत्थरों का धैर्यपूर्वक सामना करता हुआ मानव मंगल के पुष्प लुटाता रहा।

    मानव-मंगल हेतु ही ऋषिवर ने तत्कालीन परिस्थितियों के दृष्टिगत तीन प्रमुख लक्ष्य निर्धारित किए - वैदिक धर्म का प्रचार, राष्ट्रीय भावना का प्रसार व समाज सुधार।

    तत्कालीन परिवेश में धर्म वास्तविक अर्थों में प्रायः विलुप्त हो चूका था। उसका अस्तित्व पाखण्डों, अंधविश्वासों, रूढ़ियों, विभ्रमों व अज्ञान के अंधकार के नहर में खो चूका था। महर्षि ने वैदिक धर्म के प्रचार द्वारा ज्ञान का ऐसा अकाशदीप प्रज्वलित किया जिसके प्रकाश ने तत्कालीन परिवेश को तो आलोकित किया ही वह तो आज भी ज्ञान के तिमिर का छेदन कर रहा है।
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    वेदों के प्रति उनका दृष्टिकोण पूर्णतः वैज्ञानिक था। संस्कृति के प्रति वे पूर्वाग्रही कदापि नहीं थे। यही कारण है कि उनके गहन अध्ययन, चिन्तन, मनन का परिणाम है - 'सत्यार्थ प्रकाश।' सत्यार्थ प्रकाश के रूप उस दिव्य विभूति ने एक ऐसा शाश्वत प्रकाश-स्तम्भ मानव जाति को प्रदान कर उपकृत किया जिसमें प्रत्येक युग में मानव संततियों का मार्दर्शन करने की असीम क्षमता विद्यमान है। इस तथ्य की पुष्टि करता है हमारा इतिहास। भारतीय स्वतंत्रता के अग्रदूत अनेक क्रांतिकारियों के जीवन व विचारधारा पर 'सत्यार्थ प्रकाश' का गहन प्रभाव पड़ा चाहे वे गर्म दलीय नेता 'बाल लाल पाल' थे, देश के लिए प्राणोत्सर्ग करने वाले नौजवान सभा के भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव थे, या रणबांकुरे आज़ाद, यशपाल थे, चाहे कालापानी का भयावह दण्ड भोगने वाले वीर सावरकर थे, चाहे अंग्रेजों को रणभूमि में ललकारने वाले सेनानायक सुभाषचन्द्र बोस थे या लाला हरदयाल, सरदार अजीत सिंह, राजेंद्र लाहिड़ी, यतिन्दास जैसे मां भारती के वीर सपूत थे या फिर 'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है' जैसी अंग्रेजी सत्ता को सीधी चुनौती देने वाली पंक्तियों के रचनाकार काकोरी कांड के सूत्रधार क्रान्तिकारी पं० रामप्रसाद बिस्मिल थे जिनकी जीवन दिशा ही 'सत्यार्थ प्रकाश' व आर्य समाज के सिद्धान्तों ने परिवर्तित कर दी थी। जिस प्रकार महर्षि की विचारधारा ने क्रान्तिकारियों को प्रभावित किया उससे उस महनीय व्यक्तित्व की राष्ट्रीयता स्वतः ही ध्वनित हो जाती है। वास्तव में स्वामी जी के पश्चात महात्मा गांधी , पंडित नेहरू जैसे देश के नेताओं ने भारत के सामाजिक विकास हेतु जो लक्ष्य निर्धारित किए, उनका सूत्रपात स्वामी दयानन्द द्वारा पहले ही हो चूका था।

    स्वामी जी ने राष्ट्रवासियों में देशाभिमान जागृत किया, उन्हें स्वराज्य की उत्कृष्टता का पाठ पढ़ाया। वे ही प्रथम महापुरुष थे जिन्होंने भारत को भारतीयों के लिए घोषित किया। स्वयं संस्कृत के प्रकांड पंडित और मातृभाषा गुजराती के विद्वान होते हुए भी उन्होंने हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किया। उन्होंने मद्रास से प्रकाशित पत्र 'हिन्दी प्रचार समाचार' में वक्तव्य दिया- 

    ''हिन्दी के द्वारा सारा भारतवर्ष एक सूत्र में पिरोया जा सकता है। हिन्दू तो इसके झण्डे के नीचे आ ही जाएंगे, मुसलमानों के लिए भी इसको अपनाना आसान होगा क्योंकि उर्दू भाषा का सारा ढांचा हिन्दी का ही रूप लिए है।'' -श्रीमती सुशील बाला

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    The Majesty of India is attributed to the Magnificence of this divine spear, illuminated by the great pride of India - the great sages like Rishivar Dayanand, the saints, the scholars, the divine men, because the dignity of the important people lies in the extravagance of their deeds. This characteristic of karma makes him distinguished on a higher level than life and he becomes an exemplary personality. In this way, the great experience of Maharishi Dayanand Saraswati became the inspiration for the world.

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    सम्बन्ध एक मिथ्या - केवल जन्म व मृत्यु के मध्य में ही सम्बन्ध प्रतीत हो रहा है। इसलिए यह सम्बन्ध भी मिथ्या है। जो सामान आज नहीं तो दस दिन बाद अवश्य अपमानपूर्वक छोड़ना पड़ेगा। उसे दस दिन पहले सम्मानपूर्वक क्यों न छोड़ दें? जिस परिवार को दस दिन बाद रोते हुए छोड़ना है उस परिवार को दस दिन पहले हंसते हुए क्यों न छोड़ दें? तो क्या...

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