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  • सत्यार्थ प्रकाश ने जीवन की दिशा ही बदल दी

    सत्यार्थ प्रकाश ने जीवन की दिशा ही बदल दी

    लखनऊ में एक बार लोकमान्य तिलक के अपहरण की योजना गई। कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने हेतु तिलक लखनऊ स्टेशन पर उतरे। कांग्रेस के गरम व नरम दोनों दलों के लोग उनकी किसी भी तरह अपहरण करके अपने-अपने खेमे में लेजाकर जलूस निकालने की तैयारी कर चुके थे। लेकिन संख्या में अधिक होने के कारण नरम दल के लोगों ने रेल गाड़ी से उतरते ही तिलक जी को अपने कब्जे में ले लिया और। वहां एकत्र गरम दल के लोग तिलक को अपने कब्जे में लेने का कोई उपाय सोच ही रहे थे, कि अचानक एक युवक कार के आगे वाले पहिए के आगे लेट गया और जोर-जोर से चिल्लाने लगा ''गाड़ी मेरे ऊपर से निकल के ले जाओं ! गाड़ी मेरे ऊपर से निकाल के ले जाओं!'' वह रोता-रोता चीख कर उपरोक्त वाक्य को बार-बार दोहरा रहा था। इतनी ही देर में गरम दल के लोग भी कार के आगे और पीछे लेट गए। गाड़ी न आगे चल सकती थी न पीछे। सबसे पहले आगे लेता हुआ युवक फुर्ती से खड़ा हुआ, उसने अन्य लोगों को संकेत किया और कुछ ही क्षणों में गरम दल के लोगों ने तिलक जी को गाड़ी से बाहर निकाला, उन्हें अपने हाथों पर उठाकर झुंड के बाहर लाये और वहां पहले से ही तैयारबग्घी में बैठा दिया । उस युवक ने बग्घी के घोड़ों को खोलकर अगल कर दिया। कुछ युवक घोड़ों की जगह स्वयं बग्घी को खींचने लगे। तिलक का यह जलूस अपने आप में अभूतपूर्व और ऐतिहासिक था। जो युवक गाड़ी के आगे लेटा था और रो-रोकर चिल्ला रहा था, वह था काकोरी काण्ड का नायक 'रामप्रसाद बिस्मिल।'

    Motivational speech on Vedas by Dr. Sanjay Dev
    Ved Katha Pravachan - 28 | Explanation of Vedas | दिव्य मानव निर्माण की वैदिक योजना

    'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है' प्रसिद्ध गीत के अमर गायक पं० राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म दिनांक ११ जून १८६७ ई० को शाहजहांपुर के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ। आर्य समाजी विद्वान् मुंशी इन्द्रजीत ने इनकी बचपन की बुरी आदंतो को छुड़ाकर इनमें नये संस्कारों की ज्योति जागृत की। इनको महर्षि दयानन्द का जीवन-चरित्र व 'सत्यार्थ प्रकाश' पढ़ने को दिया। 'सत्यार्थ प्रकाश' ने बिस्मिल के जीवन की दिशा ही बदल दी। कुछ समय बाद बिस्मिल आर्य समाज के संन्यासी स्वामी सोमदेव के सम्पर्क में आए। स्वामी सोमदेव ने इस बालक में देश भक्ति के भावों की गंगा प्रवाहित कर दी। तब स्वामी सोमदेव ने फांसी की सजा की घोषणा की थी तब रामप्रसाद बिस्मिल के अन्दर क्रान्ति की भावना जाग उठी उन्होंने अपने गुरु स्वामी सोमदेव के सम्मुख प्रतिज्ञा की ''देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए वह अपना सर्वस्व भारत मां के चरणों में न्यौछावर कर अपने प्राणों का उत्सर्ग कर देंगे।'' गुरु का आशीर्वाद पाकर भारत माँ का शूर-सपूत अपने निश्चय को पूरा करने हेतु अवसर की तलाश में रहें लगा। सारे दिन आर्य समाज में भविष्य की योजना बनाते रहते।

    राम प्रसाद बिस्मिल ने प्रसिद्ध क्रांतिकारी शचीन्द्र नाथ बख्शी द्वारा स्थापित 'हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन की सदस्यता ग्रहण कर ली। ब्रिटिश सत्ता से टक्कर लेने के लिए शस्त्रों की आवश्यकता थी। एक बार की घटना है कि उन्होंने ग्वालियर के एक रिटायर्ड एस.पी. से कुछ राइफल एवं रिवाल्वर खरीदे। अब इन हथियारों को शाहजहाँपुर ले जाने की समस्या थी। बिस्मिल के पीछे पहले ही पुलिस लगी ही थी। अतः पकड़े जाने का अंदेसा था। बिस्मिल ने उन शस्त्रों को अशफाक उल्ला खाँ के पास ग्वालियर ही छोड़ा और वह शाहजहाँपुर आ गए। वहां से अपनी छोटी बहिन शास्त्री देवी को लेकर ग्वालियर आए। छोटी बहिन की दोनों टांगों में राइफल और पिस्तौलें बांधकर ऊपर से खपच्चे बांधकर फ्रैक्चर जैसी पट्टियां बांध दी। बहिन को दो-तीन लोग हाथों में उठाकर ट्रेन में लिटा-लिटा कर इलाज के लिए लखनऊ ले जाने का बहाना करते हुए शाहजहाँपुर पहुँच गए। देश के लिए ऐसे समर्पित थे बिस्मिल।

    जर्मनी से केशव चक्रवर्ती ने माउजर पिस्तौलों की पेटी का एक पार्सल भारतीय क्रांतिवीरों के लिए भारत भेजा था। उसे क्रांतिवीरों ने धन देकर कोलकत्ता बन्दरगाह से प्राप्त करना था। इसके लिए धन की तुरन्त आवश्यकता आ पड़ी। अतः बिस्मिल और उनके साथियों ने निश्चय किया कि सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर गाड़ी से सरकारी खजाना लूटा जाए। इसी हेतु दिनांक ९ अगस्त १९२५ को शाहजहाँपुर स्टेशन से सात क्रांतिकारी गाड़ी पर चढ़े। काकोरी स्टेशन से तीन क्रांतिकारी चढ़े। इस प्रकार इस कार्य-योजना में बिस्मिल के अतिरिक्त राजेंद्र नाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह, अश्फाक उल्ला खाँ, चन्द्रशेखर आजाद, बनवारी लाल (बाद में मुखविर बना) शचीन्द्र नाथ बक्शी, मुकन्दी लाल, केशव एवं मन्मथ नाथ गुप्त दस क्रांतिवीर शामिल थे। थोड़ी ही दूर ट्रेन चली होगी कि एक ने जेवरों का बक्सा स्टेशन पर ही छूट जाने का अभिनय किया और चेन खींचकर गाड़ी रुकवा ली। गाड़ी के रुकते ही एक दूसरे क्रांतिवीर ने गाड़ी से नीच उतरकर हवाई फायर किए और जोर से चिल्लाकर घोषणा की ''यात्रियों व रेलकर्मियों से निवेधन है कि वह कोई भी अपनी जगह से न हिले। यदि हिला तो गोलियों से भून दिया जाएगा। हम किसी को कुछ न कहेंगे। केवल सरकारी खज़ाना लूटकर चले जाएंगे।''
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    रेल में यधपि १४ लोगों पर बंदूकें थी दो पर पिस्तौलें। केवल एक गोरखे ने अपनी पिस्तौल का प्रयोग किया। चन्द्रशेखर आज़ाद ने तुरंत अपनी पिस्तौल से उसका सर उड़ा दिया। जब तक खजाने वाला संदूक टूट नहीं गया, क्रांतिकारी लगातार गोलियाँ दागते रहे और चेतावनी देते रहे। गाड़ी में बैठे लोगों को लगा कि सैकड़ों डाकुओं के दल ने गाड़ी को घेरा हुआ है। अतः अन्य किसी ने भी अपने हथियार का प्रयोग नहीं किया। खजाने को लूटकर सभी लोग बच निकले। इस लूट में क्रांतिवीरों को आठ हजार छः सौ रुपया हाथ लगा। माउजर पिस्तौलों का पार्सल बन्दरगाह से छुड़ा लिया गया। सरकार ने सोचा भी न था कि क्रांतिकारियों के हौसले इतने बुलंद हो सकते हैं। इस घटना से सरकर को हिला दिया। ४४ लोगों को गिरफ्तार किया गया। चन्द्रशेखर आजाद भूमिगत रहे। शेष सभी पकडे गए। दो वर्ष तक मुकदमा चला। इस प्रसिद्ध काकोरी काण्ड में राजेंद्र नाथ लाहिड़ी ने १७ दिसम्बर व राम प्रसाद बिस्मिल, अश्फाक उल्ला खाँ व ठाकुर रोशन सिंह ने १९ दिसम्बर को फांसी का फंदा चूमकर शहादत प्राप्त की। १५ लगों को १० से ५ वर्ष तक का कारावास हुआ। इन क्रान्तिवीरों की अंतिम इच्छा भी थी -

    कुछ आरजू नहीं है, आरजू है तो यह है। रख दे कोई जरा सी, खाके वतन कफन में। - रविचन्द्र गुप्ता


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    Pandit Ram Prasad Bismil, the immortal singer of the famous song 'Sarfaroshi Ki Tamanna Ab Hamare Dil Hai Hai', was born on 11 June 14 AD in a prestigious family of Shahjahanpur. Arya Samaji scholar Munshi Indrajit rescued the evil habits of his childhood and awakened the light of new values ​​in them. He was given the reading of Maharishi Dayanand's life-character and 'Satyarth Prakash'. 'Satyarth Prakash' changed the direction of Bismil's life.

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  • सद्गुणों के बीज

    सद्गुणों के बीज
    बच्चों में बोएँ सद्गुणों के बीज - अँगरेजी साहित्य के प्रसिद्ध कवि विलियम वर्ड्सवर्थ की 'माई हार्ट लिप्स अप' नामक कविता की एक प्रसिद्ध पंक्ति है - दि चाइल्ड इस दि फादर ऑफ मैन।' इसका अर्थ है - बच्चा आदमी का पिता होता है या यों कहें कि बच्चा मनुष्य का पिता होता है। इस उक्ति के माध्यम से कवि यह कहना चाहते हैं कि एक बच्चे में ही भविष्य का मनुष्य आकार लेता है।

  • समस्या समाधान का उपाय

    समस्या समाधान का उपाय

    हमें जीवन को नये आयाम देने और कुछ हटकर करने के लिये अपना नजरिया बदलना होगा। अन्धकार से लड़ने के लिये गली और मौहल्ले के हर मुहाने पर नन्हें-नन्हें दीपक जलाने होंगे। साहसी फैसला लेने के लिए अपनी अंतरात्मा की आवाज सुननी होगी। कोरे पत्तों को नहीं जड़ों को सींचने से समस्या का समाधान होगा। जीवन को सफल बनाने के लिये यह आवश्यक है कि आप स्थिति का सही विश्‍लेषण करके, उसके संदर्भ में सही पृष्ठभूमि बनाएं। हम जो भी महत्वपूर्ण निर्णय करने जा रहे हैं, यदि उनके संदर्भ में हमें पृष्ठभूमि की सही जानकारी नहीं है तो हमारे कार्य करने की दिशा गलत हो सकती है।

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  • समाज-विश्व

    समाज-विश्व
    प्रेम वस्तुओं से जुड़कर सदुपयोग की, व्यक्तियों से जुड़कर उनके कल्याण की विश्व से जुड़कर परमार्थ की बात सोचता है। मोह में व्यक्ति, पदार्थ संसार से किसी-न-किसी प्रकार की स्वार्थ सिद्धि की अभिलाषा रहती है। जिसके प्रति मोह रहता है, उसे अपनी इच्छानुसार चलाने की ललक रहती है। इसमें तनिक-सा-व्यवधान उत्पन्न होने पर खीज-असंतोष का उद्वेग उमड़ता है। प्रेम में इस तरह की कोई बात नहीं। इसका अंकुरण निकट परिकर से होता है और विकसित, पल्लवित, पुष्पित होते हुए उसकी शाखाएँ, प्रशाखाएँ समस्त समाज-विश्व में फैल जाती हैं।

  • सम्बन्ध एक मिथ्या

    सम्बन्ध एक मिथ्या -

    केवल जन्म व मृत्यु के मध्य में ही सम्बन्ध प्रतीत हो रहा है। इसलिए यह सम्बन्ध भी मिथ्या है। जो सामान आज नहीं तो दस दिन बाद अवश्य अपमानपूर्वक छोड़ना पड़ेगा। उसे दस दिन पहले सम्मानपूर्वक क्यों न छोड़ दें? जिस परिवार को दस दिन बाद रोते हुए छोड़ना है उस परिवार को दस दिन पहले हंसते हुए क्यों न छोड़ दें?

    तो क्या परिवार को छोड़कर जंगल में चले जाना चाहिए?

    ऐसा तो नहीं किन्तु तन से सबके साथ रहते हुए, यथायोग्य सम्बन्ध रखते हुए, मन से सम्बन्ध तोड़ दो, वाणी से यह किसी से मत कहो कि तुम हमारे नहीं और हम तुम्हारे नहीं परन्तु अन्दर से यह निश्‍चय कर लो कि मैं किसी का नहीं, मेरा कोई नहीं और यदि किसी का बने बिना या किसी को अपना बनाए बिना न रहा जाए तो यह निश्‍चय करो कि मैं परमात्मा का हूँ, परमात्मा मेरा है। जैसे मुसाफिर, मुसाफिरखाने को सरकारी इमारत समझता है और दूसरे मुसाफिरों को कुछ समय का साथी समझता है वैसे ही तुम भी घर को मुसाफिरखाना समझो और परिवार को थोड़े समय के साथी समझो।

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  • सम्यक पुरुषार्थ

    सम्यक पुरुषार्थ
    एक बार मुक्ति प्राप्त कर लेने पर यह आत्मा अनंत काल तक मुक्ति में ही रहती है; क्योंकि इस जीव को संसार में जन्म-मरण कराने व सुख-दुःख देने के कारण जो कर्म-संस्कार होते हैं, उनका ही सर्वथा अभाव हो जाता है। भौतिक शरीर में रहते हुए भी वह जीवन्मुक्त रहता है और हर पल आनंदित रहता है। भौतिक शरीर का परित्याग कर देने के बाद भी जीवात्मा एक अनुपम, अतींद्रिय व सच्चे सुख, शाश्वत सुख की अनुभूति करता है। यह मुक्ति का मार्ग किन्हीं विशिष्ट व्यक्तियों के लिए ही नहीं, अपितु संसार के प्रत्येक प्राणी के लिए खुला हुआ है। केवल उसे सम्यक पुरुषार्थ करने की आवश्यकता है।

  • साधना का इतिहास

    साधना का इतिहास
    साधना का इतिहास ऐसे अनगिनत लोमहर्षक उदाहरणों का साक्षी है। वस्तुतः मन को शुद्ध करना अत्यंत दुष्कर कृत्य है, लेकिन साथ ही इस साधना समर का एक सत्य यह भी है कि यदि व्यक्ति दृढ़ता के साथ अपनी आत्मिक उन्नति के ध्येय को लेकर कृतसंकल्प हो जाए, अपने आदर्श पर डटा रहे और इच्छाशक्ति को लक्ष्यकेंद्रित रखे, तो मन की शक्ति बढ़ती है और वासना का अविजित क्षेत्र अपने अधिकार में आने लगता है।

  • सामूहिकता की भावना

    सामूहिकता की भावना
    मानव जीवन की सफलता के लिए जैसे व्यक्तिगत उन्नति और सत्प्रवृत्तियों को ग्रहण करने की आवश्यकता है, वहाँ समाज संगठन को सुदृढ़ बनाना और पारस्परिक सहयोग के द्वारा सामाजिक हित की बड़ी योजनाओं की पूर्ति करना भी अत्यावश्यक है। इसके लिए लोगों में पारस्परिक एकता, भाईचारे की मनोवृत्ति का उत्पन्न होना आवश्यक है। हमारे यहाँ होली, दीपावली, गंगा दशहरा आदि जो त्योहार और पर्व नियत किए गए हैं, उनका विशेष उद्देश्य यही है कि लोग परस्पर प्रेमपूर्वक मिलें और सामूहिकता की भावना को सुदृढ़ बनाएँ।

  • स्वामी श्रद्धानन्द गुरुकुल एवं स्वतंत्रता आंदोलन - १

    स्वामी श्रद्धानन्द गुरुकुल एवं स्वतंत्रता आंदोलन - १

    सन् १८९७ में धर्मवीर पंडित लेखराम जी शहीद हो गए और आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब का पूरा दायित्व लाला मुंशीराम जी के कन्धों पर आ पड़ा। लाला मुंशीराम जी ने सन् १८९८ में आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब के अधिवेशन में महर्षि दयानन्द जी की शिक्षा संस्था जारी करने का प्रस्ताव पास कराया जिसे आगे चलकर गुरुकुल का नाम दिया गया।

    १६ दिसम्बर, १९०० के दिन इस गुरुकुल की स्थापना गुजरांवाला (अब पाकिस्तान में) की गई, परन्तु लाला मुंशीराम जी ने वेदों में पढ़ा था ''उपवहरे गिरीणां संगमें च नदीनां धियां विप्रो अजायत्। '' परमपिता परमात्मा ने मुंशीराम जी की सुन ली। जिला बिजनौर के नजीबाबाद के जमींदार अमन सिंह ने गंगातट पर बसा हुआ अपना कांगड़ी गांव उन्हें इस पविता काम के लिए दान दे दिया। अतः १९०२ में गुरुकुल गुजरांवाला से कांगड़ी में शिफ्ट कर दिया गया। और इसका नाम गुरुकुल कांगड़ी पद गया। गुरुकुल कांगड़ी शिक्षा के क्षेत्र में तो एक अदभुत परीक्षण था ही पर लाला मुंशीराम जी शिक्षा प्रसार के साथ-साथ धर्म प्रचार और समाज-सुधार विशेषतः अछूतोद्धार का कार्य अपने हाथ में लेकर उसको आगे बढ़ाने में जुट गए। इससे पहले कि महात्मा मुंशीराम जी सन्यास आश्रम में प्रवेश कर स्वामी श्रद्धानन्द बनकर गुरुकुल कांगड़ी को विदा कहते, कुछ ऐसी घटनाए घाटी जिसके कारण स्वामी श्रद्धानन्द जी राष्ट्रीय सेवहित स्वतंत्रता अंदोलन में जुटे दूसरे नेताओं के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चलने लगे।
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    १९१४ में जब गांधी जी अभी दक्षिण अफ्रीका में भारतीय मूल के लोगन की समस्या सुलझाने में लगे हुए थे, तब उन्हें भारत से अपने परम हितैषी एवं मित्र चारली एण्डरुज (सी.एफ.एण्डरुज )का एक पत्र मिला। पत्र में अन्य बातों के साथ गांधी जी को भारत लौटने पर तीन व्यक्तियों से अवश्य ही मिलने का आग्रह किया था। इन तीनों व्यक्तियों में एक थे गुरुकुल कांगड़ी के महात्मा मुंशीराम। गांधीजी अलगे वर्ष १४ जनवरी १९१५ शनिवार के दिन अफ्रीका से वापस मुंबई पहुंचे। उन्होंने अपनी डायरी में लिखा है - ''इस साल (१९१५) हरिद्वार में कुम्भ का मेला पड़ता था। उसमें आने की मेरी प्रबल इच्छा टी फिर मुझे महात्मा मुंशीराम जी के दर्शन भी करने थे। अतः गाँधीजी ६ अप्रैल १९१५ मंगलवार की प्रातः गुरुकुल कांगड़ी देखने गए। वहां अपने महात्मा मुंशीराम से भेंट की और उनकी बैलगाड़ी से वापस हरिद्वार आ गए। ''फिर ८ अप्रैल को गुरुकुल के ब्रम्ह्चारियों की ओर से गांधीजी का अभिनन्दन किया गया। इस अवसर पर बोलते हुए महात्मा मुंशीराम जी ने कहा था - ''मुझे आशा है कि महात्मा गांधी जी भारत के लिए ज्योति स्तम्भ बन जायेंगे।'' उनकी वाणी आगे चलकर सिद्ध हो हुई। गांधी जी को ''महात्मा गांधी'' के नाम से सम्भोधन करने का शायद यह प्रथम अवसर था।

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    In 1897, Dharmaveer Pandit Lekharam Ji became a martyr and the entire responsibility of Arya Pratinidhi Sabha Punjab fell on the shoulders of Lala Munshiram Ji. Lala Munshiram ji passed the proposal of releasing education institution of Maharishi Dayanand ji in the session of Arya Pratinidhi Sabha Punjab in 1897 which was later renamed as Gurukul.

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  • स्वामी श्रद्धानन्द गुरुकुल एवं स्वतंत्रता आंदोलन - २

    स्वामी श्रद्धानन्द गुरुकुल एवं स्वतंत्रता आंदोलन - २

    १९१३ में १८ मार्च से २३ मार्च तक गांधी जी प्रायः हरिद्वार मुख्यतः गुरुकुल कांगड़ी में रहे। १८ मार्च को गुरुकुल कांगड़ी में अछूतोद्धार सम्मेलन हो रहा था। गांधी जी भी इस सम्मेलन में शामिल हुए। अपने अस्पृश्यता निवारण की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि हिन्दुओं को प्रायश्चित की भावना से कार्य करना चाहिए। २० मार्च को गुरुकुल का पुरस्कार वितरण समारोह था। गांधी जी इस समारोह में शामिल हुए। आपने कहा पाठशाला का ग्रामीण जीवन, ग्रामीण शिल्प, खुली हवा, आजादी तथा अपने लोगों की सेवा के प्रति आकर्षण उत्पन्न करना चाहिए। इसी दिन गुरुकुल कांगड़ी के वार्षिक उत्सव में उन्होने एक मार्मिक भाषण दिया। उन्होंने उचित धार्मिक भावना हमारी सबसे बड़ी तात्कालिक आवयश्यकता है। हमारी धार्मिक भावना सुप्त है और हम लोग इस कारण हमेशा भयभीत बने रहते हैं।

    २३ मार्च को उनकी तबियत ठीक न होने पर भी आर्यसमाज भवन हरिद्वार में उन्होंने दयानन्द स्कूल के विद्यार्थियों के सामने एक छोटा सा भाषण देते हुए कहा कि अपनी आत्मा के प्रति सच्चा बनाना चाहिए, तभी तो वे देश के प्रति सच्चे बन सकते हैं। गुरुकुल कांगड़ी के महात्मा मुंशीराम के साथ मार्च १९१६ में महात्मा गांधी जी की मुलाकात शायद अंतिम मुलाकात थी, क्योंकि अगले वर्ष १९१७ में ही महात्मा मुंशीराम जी ने सन्यांस आश्रम में प्रवेश किया और वे स्वामी श्रद्धानन्द बन गए। संन्यासी बन जाने पर स्वामी श्रद्धानन्द जी केवल गुरुकुल कांगड़ी में न रहकर सकल मानव जाति के बन गए। अपने जान सेवा विशेषकर राष्ट्रीय सेवा में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। महात्मा गांधी जी के आग्रह पर आपने कांग्रेस को सहयोग देना भी स्वीकार लिया। १९१८ में गढ़वाल (वर्तमान उत्तरांचल) में अकाल पद गया। उन दिनों पहला विश्वयुद्ध चल रहा था। अतः भारत की अंग्रेज सरकार का तो अपना राज सिंहासन ही डांवाडोल था।
    गढ़वाल की अकाल पीड़ित जनता की और ध्यान देने के लिए न उनके पास समय था और न ही सरकार इसकी आवयश्कता ही समझती थी। सरकार का तो यत्न था कि भारत की जनता को यत्न गढ़वाल अकाल की खबर तक न हो, परन्तु स्वामी श्रद्धानन्दजी जी को इस अकाल का पता चला तो उन्होंने अपने अखबार ''सत्यधर्म प्रचारक'' इस अकाल का पूरा विवरण लिखकर जनता से सहायता की अपील की। स्वामी जी की अपील पढ़कर लोगों पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि धन पानी की तरह बरसने लगा। स्वामी जी अपने साथियों को लेकर गढ़वाल पहुंच गए और सरकारी विरोध बाधाओं की परवाह न करते हुए दुःख और विवश जनता की सेवा में जुट गए।

    Motivational speech on Vedas by Dr. Sanjay Dev
    Ved Katha Pravachan -20 | Introduction to the Vedas | धर्म की कसौटी - सबका कल्याण

    १९१९ का वर्ष भारत के इतिहास में बहुत ही महत्वपूर्ण वर्ष था। विश्वयुद्ध में बुरी तरह फंसी ब्रतानवी सरकार ने भारत से धन और जन की सहायता प्राप्त करते हुए भारत की जनता को आश्वासन दिया था कि युद्ध जीत लेने के पश्चात अंग्रेजी सरकार भारत को आजाद कर देगी। पर युद्ध समाप्त होते ही विदेशी सरकार ने भारत भर में रोलट एक्ट लागू कर दिया। इस विश्वासघात के कारण जनता जनार्दन में असंतोष व द्वेष फ़ैल गया। महात्मा गांधी ने तंग आकर रौलेट एक्ट के विरुद्ध अहिंसात्मक सत्याग्रह की घोषणा कर दी। तब मातृभूमि की पुकार सुनकर राष्ट्रहित के लिए अपनी आहुति देने के लिए स्वामी श्रद्धानन्द जी को चुना गया। दिल्ली में सत्याग्रह कमेटी का गठन किया गया, जिसका प्रधान स्वामी श्रद्धानन्द जी को चुना गया। कमेटी ने ३० मार्च की सायं को स्वामी जी की अध्यक्षता में एक बैठक हुई। अलगे दिन ३० मार्च को दिल्ली भर में हड़ताल हुई। ३० मार्च १९१९ जब दिल्ली की जनता का नेतृत्व करते हुए वे चांदनी चौक के घंटाघर के निकट पहुंचे तो गोरखा सिपाहियों ने अपने बंदूकों की संगीने स्वामी जी की ओर तानते हुए कहा - ''हट जाओ नहीं तो छेद देंगे।'' यह सुनकर स्वामी जी एक कदम और आगे बढे गए। अब संगीन की नोक स्वामी जी की छाती को छू रही थी। स्वामी जी ने बड़े ऊंचे स्वर में कहा - ''चलाओ गोली'' और वही खड़े रहे। वौ सैनिक स्वामी जी पर गोली चलाने की साहस नहीं जुटा सके। ४ अप्रैल, १९१९ को जामा मस्जिद दिल्ली में उसी सप्ताह अंगेजी सिपाहियों की गोलियों से शहीद होने वाले शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए एक शोक सभा का आयोजन किया गया। शहीद होने वाले ५ युवकों में तीन हिन्दुओं और दो मुसलमान युवक थे।
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    अन्य लोगों के साथ स्वमी श्रद्धानन्द जी को विशेष रूप से श्रद्धांजलि देने के लिए बुलाया गया। मस्जिद के मिम्बर पर खड़े होकर स्वामी श्रद्धानन्द जी ने अपना भाषण वेदमंत्र के उच्चारण से आरम्भ किया। स्वामी जी के विचार सुनकर उपस्थित जन समूह देश भक्ति के नशे में झूम उठा। जामा मस्जिद की मिम्बर से भाषण देने वाले पहले तथा अंतिम गैर मुस्लिम व्यक्ति केवल मात्र स्वामी श्रद्धानन्द जी ही हुए हैं। उसी वर्ष अमृतसर में जलियांवाले बाग़ का खुनी काण्ड घटित हो गया। कांग्रेस का सालाना अधिवेशन अमृतसर में किया जाना असम्भव लगने लगा था, तब स्वामी जी ने इसका सारा दायित्व समिति अध्यक्ष बना दिया गया। अमृतसर में कांग्रेस का १९१९ में सालाना अधिवेशन सफलता पूर्वक कराना और स्वागत अध्यक्ष के पद से प्रथम बार हिन्दी भाषा में स्वागत भाषण करना स्वामी श्रद्धानन्द जैसे निर्भिक पुरुष के लिए ही सम्भव था।
    सितम्बर १९२२ में सिखों ने अंग्रेजी सरकार की दमन नीति के विरुद्ध ''गुरु के ब्याज'' का मोर्चा आरम्भ कर दिया। स्वामी श्रद्धानन्द जी अकालियों को अपना सहयोग और आशीर्वाद देने के लिए दिली से चलकर अमृतसर पहुंच गए। वहां उन्होंने अकाल तख्त के निकट हुई सभा में जो भाषण दिया। उससे चिढ़कर उस समय की पंजाब सरकार ने आपको जेल में बन्द कर दिया।  एक साल चार महीने की जेल यात्रा पूरी कर दिसम्बर १९२३ में स्वामी जी को रिहा किया गया। - तरसेम कुमार आर्य

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    The year 1919 was a very important year in the history of India. The British government, which was badly trapped in the World War, while receiving the help of money and people from India, assured the people of India that the British government would liberate India after winning the war. But as soon as the war ended, the foreign government implemented the Rowlatt Act across India. This betrayal led to dissatisfaction and malice in Janata Janardhana. Mahatma Gandhi got fed up and declared non-violent satyagraha against the Rowlatt Act. 

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  • हिंदी भाषा की महत्ता

    हिंदी भाषा की महत्ता
    वर्तमान स्थिति इतनी संवेदनशील है कि भाषा के प्रश्न को गैरराजनीतिक ढंग से सोचना ही संभव नहीं प्रतीत होता है। हिंदी हमारी संस्कृति में रची-बसी है, रंगों-रंगो में घुली-मिली हुई है। यह एक विशाल समाज की भाषा है। बहुसंख्यक नागरिकों से संपर्क के लिए हिंदी अनिवार्य है। इसीलिए अपने देश में एक स्विस बहुराष्ट्रीय कंपनी हिंदी सिखाने का व्यवसाय कर रही है। इसके अतिरिक्त अमेरिका सहित यूरोप के कई देश हिंदी भाषा सीखने का प्रयास कर रहे हैं। यही कारण है कि टीवी पर विदेशी चैनल भी हिंदी भाषा का प्रयोग कर रहे हैं। आखिरकार उन्हें अपने उत्पाद के तकनीकी महत्व, जरूरी सूचनाएँ, उत्पादों का विज्ञापन हिंदी भाषी लोगों के बीच में ही करना है। यह हिंदी भाषा की महत्ता को रेखांकित करता है।

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    सम्बन्ध एक मिथ्या - केवल जन्म व मृत्यु के मध्य में ही सम्बन्ध प्रतीत हो रहा है। इसलिए यह सम्बन्ध भी मिथ्या है। जो सामान आज नहीं तो दस दिन बाद अवश्य अपमानपूर्वक छोड़ना पड़ेगा। उसे दस दिन पहले सम्मानपूर्वक क्यों न छोड़ दें? जिस परिवार को दस दिन बाद रोते हुए छोड़ना है उस परिवार को दस दिन पहले हंसते हुए क्यों न छोड़ दें? तो क्या...

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