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सत्यार्थ प्रकाश ने जीवन की दिशा ही बदल दी

लखनऊ में एक बार लोकमान्य तिलक के अपहरण की योजना गई। कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने हेतु तिलक लखनऊ स्टेशन पर उतरे। कांग्रेस के गरम व नरम दोनों दलों के लोग उनकी किसी भी तरह अपहरण करके अपने-अपने खेमे में लेजाकर जलूस निकालने की तैयारी कर चुके थे। लेकिन संख्या में अधिक होने के कारण नरम दल के लोगों ने रेल गाड़ी से उतरते ही तिलक जी को अपने कब्जे में ले लिया और। वहां एकत्र गरम दल के लोग तिलक को अपने कब्जे में लेने का कोई उपाय सोच ही रहे थे, कि अचानक एक युवक कार के आगे वाले पहिए के आगे लेट गया और जोर-जोर से चिल्लाने लगा ''गाड़ी मेरे ऊपर से निकल के ले जाओं ! गाड़ी मेरे ऊपर से निकाल के ले जाओं!'' वह रोता-रोता चीख कर उपरोक्त वाक्य को बार-बार दोहरा रहा था। इतनी ही देर में गरम दल के लोग भी कार के आगे और पीछे लेट गए। गाड़ी न आगे चल सकती थी न पीछे। सबसे पहले आगे लेता हुआ युवक फुर्ती से खड़ा हुआ, उसने अन्य लोगों को संकेत किया और कुछ ही क्षणों में गरम दल के लोगों ने तिलक जी को गाड़ी से बाहर निकाला, उन्हें अपने हाथों पर उठाकर झुंड के बाहर लाये और वहां पहले से ही तैयारबग्घी में बैठा दिया । उस युवक ने बग्घी के घोड़ों को खोलकर अगल कर दिया। कुछ युवक घोड़ों की जगह स्वयं बग्घी को खींचने लगे। तिलक का यह जलूस अपने आप में अभूतपूर्व और ऐतिहासिक था। जो युवक गाड़ी के आगे लेटा था और रो-रोकर चिल्ला रहा था, वह था काकोरी काण्ड का नायक 'रामप्रसाद बिस्मिल।'

Motivational speech on Vedas by Dr. Sanjay Dev
Ved Katha Pravachan - 28 | Explanation of Vedas | दिव्य मानव निर्माण की वैदिक योजना

'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है' प्रसिद्ध गीत के अमर गायक पं० राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म दिनांक ११ जून १८६७ ई० को शाहजहांपुर के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ। आर्य समाजी विद्वान् मुंशी इन्द्रजीत ने इनकी बचपन की बुरी आदंतो को छुड़ाकर इनमें नये संस्कारों की ज्योति जागृत की। इनको महर्षि दयानन्द का जीवन-चरित्र व 'सत्यार्थ प्रकाश' पढ़ने को दिया। 'सत्यार्थ प्रकाश' ने बिस्मिल के जीवन की दिशा ही बदल दी। कुछ समय बाद बिस्मिल आर्य समाज के संन्यासी स्वामी सोमदेव के सम्पर्क में आए। स्वामी सोमदेव ने इस बालक में देश भक्ति के भावों की गंगा प्रवाहित कर दी। तब स्वामी सोमदेव ने फांसी की सजा की घोषणा की थी तब रामप्रसाद बिस्मिल के अन्दर क्रान्ति की भावना जाग उठी उन्होंने अपने गुरु स्वामी सोमदेव के सम्मुख प्रतिज्ञा की ''देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए वह अपना सर्वस्व भारत मां के चरणों में न्यौछावर कर अपने प्राणों का उत्सर्ग कर देंगे।'' गुरु का आशीर्वाद पाकर भारत माँ का शूर-सपूत अपने निश्चय को पूरा करने हेतु अवसर की तलाश में रहें लगा। सारे दिन आर्य समाज में भविष्य की योजना बनाते रहते।

राम प्रसाद बिस्मिल ने प्रसिद्ध क्रांतिकारी शचीन्द्र नाथ बख्शी द्वारा स्थापित 'हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन की सदस्यता ग्रहण कर ली। ब्रिटिश सत्ता से टक्कर लेने के लिए शस्त्रों की आवश्यकता थी। एक बार की घटना है कि उन्होंने ग्वालियर के एक रिटायर्ड एस.पी. से कुछ राइफल एवं रिवाल्वर खरीदे। अब इन हथियारों को शाहजहाँपुर ले जाने की समस्या थी। बिस्मिल के पीछे पहले ही पुलिस लगी ही थी। अतः पकड़े जाने का अंदेसा था। बिस्मिल ने उन शस्त्रों को अशफाक उल्ला खाँ के पास ग्वालियर ही छोड़ा और वह शाहजहाँपुर आ गए। वहां से अपनी छोटी बहिन शास्त्री देवी को लेकर ग्वालियर आए। छोटी बहिन की दोनों टांगों में राइफल और पिस्तौलें बांधकर ऊपर से खपच्चे बांधकर फ्रैक्चर जैसी पट्टियां बांध दी। बहिन को दो-तीन लोग हाथों में उठाकर ट्रेन में लिटा-लिटा कर इलाज के लिए लखनऊ ले जाने का बहाना करते हुए शाहजहाँपुर पहुँच गए। देश के लिए ऐसे समर्पित थे बिस्मिल।

जर्मनी से केशव चक्रवर्ती ने माउजर पिस्तौलों की पेटी का एक पार्सल भारतीय क्रांतिवीरों के लिए भारत भेजा था। उसे क्रांतिवीरों ने धन देकर कोलकत्ता बन्दरगाह से प्राप्त करना था। इसके लिए धन की तुरन्त आवश्यकता आ पड़ी। अतः बिस्मिल और उनके साथियों ने निश्चय किया कि सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर गाड़ी से सरकारी खजाना लूटा जाए। इसी हेतु दिनांक ९ अगस्त १९२५ को शाहजहाँपुर स्टेशन से सात क्रांतिकारी गाड़ी पर चढ़े। काकोरी स्टेशन से तीन क्रांतिकारी चढ़े। इस प्रकार इस कार्य-योजना में बिस्मिल के अतिरिक्त राजेंद्र नाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह, अश्फाक उल्ला खाँ, चन्द्रशेखर आजाद, बनवारी लाल (बाद में मुखविर बना) शचीन्द्र नाथ बक्शी, मुकन्दी लाल, केशव एवं मन्मथ नाथ गुप्त दस क्रांतिवीर शामिल थे। थोड़ी ही दूर ट्रेन चली होगी कि एक ने जेवरों का बक्सा स्टेशन पर ही छूट जाने का अभिनय किया और चेन खींचकर गाड़ी रुकवा ली। गाड़ी के रुकते ही एक दूसरे क्रांतिवीर ने गाड़ी से नीच उतरकर हवाई फायर किए और जोर से चिल्लाकर घोषणा की ''यात्रियों व रेलकर्मियों से निवेधन है कि वह कोई भी अपनी जगह से न हिले। यदि हिला तो गोलियों से भून दिया जाएगा। हम किसी को कुछ न कहेंगे। केवल सरकारी खज़ाना लूटकर चले जाएंगे।''
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रेल में यधपि १४ लोगों पर बंदूकें थी दो पर पिस्तौलें। केवल एक गोरखे ने अपनी पिस्तौल का प्रयोग किया। चन्द्रशेखर आज़ाद ने तुरंत अपनी पिस्तौल से उसका सर उड़ा दिया। जब तक खजाने वाला संदूक टूट नहीं गया, क्रांतिकारी लगातार गोलियाँ दागते रहे और चेतावनी देते रहे। गाड़ी में बैठे लोगों को लगा कि सैकड़ों डाकुओं के दल ने गाड़ी को घेरा हुआ है। अतः अन्य किसी ने भी अपने हथियार का प्रयोग नहीं किया। खजाने को लूटकर सभी लोग बच निकले। इस लूट में क्रांतिवीरों को आठ हजार छः सौ रुपया हाथ लगा। माउजर पिस्तौलों का पार्सल बन्दरगाह से छुड़ा लिया गया। सरकार ने सोचा भी न था कि क्रांतिकारियों के हौसले इतने बुलंद हो सकते हैं। इस घटना से सरकर को हिला दिया। ४४ लोगों को गिरफ्तार किया गया। चन्द्रशेखर आजाद भूमिगत रहे। शेष सभी पकडे गए। दो वर्ष तक मुकदमा चला। इस प्रसिद्ध काकोरी काण्ड में राजेंद्र नाथ लाहिड़ी ने १७ दिसम्बर व राम प्रसाद बिस्मिल, अश्फाक उल्ला खाँ व ठाकुर रोशन सिंह ने १९ दिसम्बर को फांसी का फंदा चूमकर शहादत प्राप्त की। १५ लगों को १० से ५ वर्ष तक का कारावास हुआ। इन क्रान्तिवीरों की अंतिम इच्छा भी थी -

कुछ आरजू नहीं है, आरजू है तो यह है। रख दे कोई जरा सी, खाके वतन कफन में। - रविचन्द्र गुप्ता


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Pandit Ram Prasad Bismil, the immortal singer of the famous song 'Sarfaroshi Ki Tamanna Ab Hamare Dil Hai Hai', was born on 11 June 14 AD in a prestigious family of Shahjahanpur. Arya Samaji scholar Munshi Indrajit rescued the evil habits of his childhood and awakened the light of new values ​​in them. He was given the reading of Maharishi Dayanand's life-character and 'Satyarth Prakash'. 'Satyarth Prakash' changed the direction of Bismil's life.

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