समस्या समाधान का उपाय
हमें जीवन को नये आयाम देने और कुछ हटकर करने के लिये अपना नजरिया बदलना होगा। अन्धकार से लड़ने के लिये गली और मौहल्ले के हर मुहाने पर नन्हें-नन्हें दीपक जलाने होंगे। साहसी फैसला लेने के लिए अपनी अंतरात्मा की आवाज सुननी होगी। कोरे पत्तों को नहीं जड़ों को सींचने से समस्या का समाधान होगा। जीवन को सफल बनाने के लिये यह आवश्यक है कि आप स्थिति का सही विश्लेषण करके, उसके संदर्भ में सही पृष्ठभूमि बनाएं। हम जो भी महत्वपूर्ण निर्णय करने जा रहे हैं, यदि उनके संदर्भ में हमें पृष्ठभूमि की सही जानकारी नहीं है तो हमारे कार्य करने की दिशा गलत हो सकती है।
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प्रार्थना से कामना सिद्धि
मनुष्य अनेक शुभ अभिलाषाओं से कुछ यज्ञों को प्रारम्भ करते हैं और चाहते हैं कि यज्ञ सफल हो जाएँ, परन्तु कोई भी यज्ञ तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक उस यज्ञ में देवों के देव अग्निरूप परमात्मा पूरी तरह न व्याप रहे हों। चूँकि जगत में परमात्मा के अटल नियमों व दिव्य-शक्तियों के अर्थात् देवों के द्वारा ही सब-कुछ सम्पन्न होता है। परमात्मा के बिना कोई यज्ञ कैसे सफल हो सकता है? और जिस यज्ञ में परमात्मा व्याप्त हो वह यज्ञ अध्वर (ध्वर अर्थात कुटिलता और हिंसा से रहित) तो अवश्य होना चाहिए। पर जब हम यज्ञ प्रारम्भ करते हैं, कोई शुभ कर्म करते हैं, किसी संघ-संघटन में लगते हैं, परोपकार का कार्य करने लगते हैं, तो मोहवश परमात्मा को भूल जाते हैं। उसकी जल्दी सफलता के लिये हिंसा और कुटिलता से भी काम लेने को उतारु हो जाते हैं। तभी परमात्मा हाथ हमारे ऊपर से उठ जाता है। ऐसा यज्ञ देवों को स्वीकृत नहीं होता, उन्हें नहीं पहुँचता, सफल नहीं होता। इसलिए याज्ञिक प्रार्थना करता है कि हे प्रभो! अब जब कभी हम निर्बलता के वश अपने यज्ञों में कुटिलता व हिंसा का प्रवेश करने लगें और तुझे भूल जाएँ तो हे प्रकाशक देव! हमारे अन्तरात्मा में एक बार इस वैदिक सत्य को जगा देना, हमारा अन्तरात्मा बोल उठे कि हे अग्ने! जिस कुटिलता व हिंसारहित यज्ञ को तुम सब ओर से घेर लेते हो, व्याप लेते हो, केवल वही यज्ञ देवों में पहुँचता है अर्थात् दिव्य फल लाता है, सफल होता है। सचमुच तुम्हें भुलाकर, तुम्हें हटाकर यदि हम किसी संगठन शक्ति द्वारा कुटिलता व हिंसा के जोर पर कुछ करना चाहेंगे तो चाहे कितना भी घोर उद्योग कर लें हमें कभी सफलता नहीं मिलेगी।
Everything in the world is accomplished by God's steadfast rules and divine powers, that is, by the Gods. How can any Yagya be successful without God? And the Yagya in which God is present must be Adhvara Dhvara i.e. free from evil and violence.
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सम्बन्ध एक मिथ्या -
केवल जन्म व मृत्यु के मध्य में ही सम्बन्ध प्रतीत हो रहा है। इसलिए यह सम्बन्ध भी मिथ्या है। जो सामान आज नहीं तो दस दिन बाद अवश्य अपमानपूर्वक छोड़ना पड़ेगा। उसे दस दिन पहले सम्मानपूर्वक क्यों न छोड़ दें? जिस परिवार को दस दिन बाद रोते हुए छोड़ना है उस परिवार को दस दिन पहले हंसते हुए क्यों न छोड़ दें?
तो क्या परिवार को छोड़कर जंगल में चले जाना चाहिए?
ऐसा तो नहीं किन्तु तन से सबके साथ रहते हुए, यथायोग्य सम्बन्ध रखते हुए, मन से सम्बन्ध तोड़ दो, वाणी से यह किसी से मत कहो कि तुम हमारे नहीं और हम तुम्हारे नहीं परन्तु अन्दर से यह निश्चय कर लो कि मैं किसी का नहीं, मेरा कोई नहीं और यदि किसी का बने बिना या किसी को अपना बनाए बिना न रहा जाए तो यह निश्चय करो कि मैं परमात्मा का हूँ, परमात्मा मेरा है। जैसे मुसाफिर, मुसाफिरखाने को सरकारी इमारत समझता है और दूसरे मुसाफिरों को कुछ समय का साथी समझता है वैसे ही तुम भी घर को मुसाफिरखाना समझो और परिवार को थोड़े समय के साथी समझो।
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महर्षि दयानन्द की देश वन्दना -
आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश में एक कर्त्तव्य बोध कराया है। यह बोध देश के प्रत्येक नागरिक के लिए धारण करने योग्य है। भला जब आर्यावर्त में उत्पन्न हुए हैं और इसी देश का अन्न जल खाया-पीया, अब भी खाते पीते हैं, तब अपने माता-पिता तथा पितामहादि के मार्ग को छोड़कर दूसरे विदेशी मतों पर अधिक झुक जाना, अंग्रेजी भाषा पढकर अभिमानी होकर झटिति एक अलग पन्थ चलाने में प्रवृत्त हुए मनुष्यों का स्थिर और वृद्धिकारक काम क्योंकर हो सकता है?
देश के प्रति समर्पित ऋषि की यह देश वन्दना बहुत सरल हृदय से लिखी गई है। उनकी इस वन्दना में कहीं कोई छल-कपट पक्षपात और तुष्टीकरण की गंध नहीं है।
Maharishi Dayanand, the founder of Arya Samaj, has given us a sense of duty in Satyarth Prakash. This sense is worth imbibing for every citizen of the country. Well, when we were born in Aryavart and ate the food and water of this country, and even now we eat and drink it, then how can the work of people who leave the path of their parents and forefathers and lean more towards other foreign religions, become arrogant after studying English language and start following a different path, be stable and progressive?
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सम्बन्ध एक मिथ्या - केवल जन्म व मृत्यु के मध्य में ही सम्बन्ध प्रतीत हो रहा है। इसलिए यह सम्बन्ध भी मिथ्या है। जो सामान आज नहीं तो दस दिन बाद अवश्य अपमानपूर्वक छोड़ना पड़ेगा। उसे दस दिन पहले सम्मानपूर्वक क्यों न छोड़ दें? जिस परिवार को दस दिन बाद रोते हुए छोड़ना है उस परिवार को दस दिन पहले हंसते हुए क्यों न छोड़ दें? तो क्या...